Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३ जीवन में सदाचार मरी हुई चुहिया पहुंच गई थी. रात को बनाई गई भिण्डी की सब्जी में छिपकली निकलने की तो सैंकड़ौं घटनाएँ सुनने में आई हैं. घाटकोपर (बम्बई) के एक श्रावक परिवार को सुबह पांच बजे कहीं जाना था. इसके लिए टैक्सी बुलाई गई थी, श्राविकाने गैस के चूल्हे पर केतली चढ़ा कर चाय बनाई. उसे छानकर पांच कप तैयार किये गये, श्रावक-श्राविका और तीन बच्चे, पांचो ने चाय पी. परिवार किसी तीर्थयात्रा के लिए जाने वाला था, परन्तु सब की परलोक यात्रा हो गई. टैक्सी वाला बारबार भोंपू बजाता रहा, किन्तु घर वाले बाहर नहीं आये, उसे शंका हुई वह भीतर गया, पांचों कुटुम्बियों को बेहोश देखकर उसने पुलिस थाने में रिपोर्ट की. पुलिस वालों ने आकर जांच पड़ताल की, केतली में सांप का बच्चा पाया गया. चाय के साथ वह उबल गया था, उसका जहर चाय के साथ पीने वालों के पेट में पहुंच गया था. सन् १९५८ के जोधपुर चातुर्मास की एक अविस्मरणीय घटना सुनिये. उपाश्रय के पास वाले एक घर में रात को एक आदमी सहसा जोरों से चिल्लाया. चिल्लाहट सुनकर मेरी भी नींद खुल गई. उस समय घड़ी में डेढ़ बजी थी. सुनने में आया कि कुञ्जे में कानखजूरा था, जो लोटे में आ गया था. लोटा उठाकर उस आदमी ने ऊपर से पानी मुँह में डालकर पीने का प्रयास किया था. कानखजूरा पानी के साथ गले में उतर गया था. तत्काल उसे अस्पताल में पहुंचाया गया. ऐसी दुर्घटनाएं रात्रि भोजन से होती रहती हैं, इसलिए रात्रि भोजन का सबको त्याग करना चाहिये. दीर्घायु का नुस्खा : स्वास्थ्य के लिए यह भी जरूरी है कि आप भूख से थोड़ा कम खायें. जैन शास्त्रों में इसे ऊणोदरी तप कहा गया है. हर मनुष्य दीर्घायु होना चाहता है. किसी कवि ने एक दोहे के माध्यम से दीर्घायु होने का नुस्खा बताया है. भोजन आधा खइकै, दुगना पानी पीव । तिगुना श्रम चौगुन हँसी, वर्ष सवा सौ जीव ।। जितनी भूख हो, उससे आधा ही भोजन किया जाय. इससे प्रमाद नहीं आता, जो दुराचार का प्रेरक है. आधा पेट खाने से शरीर हल्का-फुल्का रहता है. काम करने में स्फूर्ति रहती है. यह सदा याद रखना चाहिये कि भोजन जीवन के लिए है, भोजन के लिए जीवन नहीं. सदाचार की रक्षा के लिए यह जरूरी है कि हमारा आहार शुद्ध हो, सात्त्विक हो, परिमित हो. दूसरी बात है-दुगुना जल. शुद्ध छना हुआ जल आहार की अपेक्षा दुगुना लिया जाय. इससे पाचन अच्छी तरह होता है. पाचन के लिए तिगुना श्रम किया जाना भी जरूरी बताया गया For Private And Personal Use Only

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