Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 51
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवन दृष्टि स्वामीजी बोले - “मैं क्यों दूं? आप ही मुझे धन्यवाद दीजिये कि मुझसे आपको जीने का तरीका मालूम हुआ." जो निर्मोह होता है- निःस्वार्थ होता है. आत्मगौरवशाली होता है, वही ऐसा स्पष्ट उत्तर दे सकता है. एक बार एक सुन्दर महिला ने स्वामीजी से आकर कहा- “मुझे आपसे आपके ही समान एक तेजस्वी पुत्र चाहिये. क्या आप मेरी यह इच्छा पूरी नहीं कर सकते?" स्वामीजी ने तत्काल उस महिला के चरण छूकर कहा - "माँ! क्या तू मुझे ही अपना पुत्र नहीं मान सकती?" ऐसा उत्तर वही दे सकता है, जिसके जीवन में सदाचार प्रतिष्ठित हो. पहले युवक पच्चीस वर्ष की अवस्था में ब्रह्मचर्याश्रम के बाद जब गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने के लिए गुरुकुल से बाहर निकलते थे, तब त्यागी गुरुओं की ओर से उन्हें दीक्षान्त भाषण दिया जाता था. “सत्यं वद । धर्म चर । स्वाध्यायान्मा प्रमदः । मातृ-देवो भव । पितृदेवो भव । अतिथिदेवो भव...।" _ [सच बोलो. धर्म का आचरण करो. स्वाध्याय में प्रमाद मत करो. माता को, पिता को और अतिथि को देव समझो...] इन अन्तिम उपदेशों को जीवन में उतारा जाता था. उस समय देश सम्पन्न था, सुखी था, महापुरुषों को, महात्माओं को, तीर्थंकरों को जन्म देता था. यह देश, जहाँ बड़े-बड़े साहित्यकार, नाटककार, कलाकार और महाकवि उत्पन्न हुए, साधारण देश नहीं, तीर्थ भूमि है. पूरा भारतवर्ष एक मन्दिर है. __ आज हमारे पास से सब कुछ लूट चुका है, सत्य के प्राण तो कभी के चले गये, सदाचार भी अन्तिम सांसें ले रहा है, थोड़ा बहुत जिन्दा है भी तो ऑक्सीजन पर. कभी साधु सन्त आ गये, विचारों को प्रेरित कर गये. थोड़े दिन भावना शुद्ध रही. जागृत रही और फिर उसी मूर्छित अवस्था में प्रमाद में चले गये. देश की दुर्दशा देखकर, नैतिकता का पतन देखकर समाज की हालत देखकर भीतर से रोना आता है मैं क्या कहूँ? किससे कहूँ कि लोग जा कहाँ रहें हैं? रामराज्य को आदर्श मानने वाली महावीर का गुणगान करने वाली जनता जा किधर रही है? भाषावाद, प्रान्तवाद, नक्सलवाद, आंतकवाद, समाजवाद, पूंजीवाद आदि न जाने कितने वाद विवाद पैदा हो गये हैं. पहले ज्ञानियों के, धर्म गुरुओं के आशीर्वाद से ही सारे काम हो जाते थे. आशीर्वाद से देश आबाद था, आज विवादों से बर्बाद हो रहा है. रामराज्य स्थापित करने की जो भावना महात्मा गांधी में थी, वह साकार होगी. ऐसा कोई लक्षण नज़र नहीं आता. महावीर स्वामी ने समझाया था कि स्वयं का भी निरीक्षण करो और सर्व का भी. साधना For Private And Personal Use Only

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