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जीवन में सदाचार
३७
यदि मैं चाहूँ तो आपको सूली पर चढ़वा सकती हूँ और चाहूँ तो सिंहासन पर बिठा सकती हूँ, यह सब मेरे बाएँ हाथ का खेल है."
मौलवी बोले - " बड़ों के सामने इस तरह बेअदबी नहीं करते छोटे मुँह बड़ी बात नहीं करते. यदि तुम ऐसा कर सकती हो तो भी अपने मुँह मियाँ मिट्टू तुम्हें नहीं बनना चाहिये.” शहजादी को मौलवी की यह नसीहत बहुत कड़वी लगी. नीतिकार कहते हैं
उपदेशो हि मूर्खाणां, प्रकोपाय न शान्तये ।
पयः पानं भुजंगानां केवलं विषवर्धनम् ।।
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[मूर्खों को उपदेश दिया जाय तो इससे उनका गुस्सा बढ़ता है, शान्त नहीं होता. साँपों को दूध पिलाने से केवल उनका जहर ही बढ़ता है . ]
शहजादी उस समय तो कुछ नहीं बोली, परन्तु मौलवी साहब को मौका आने पर मजा चखाने का उसने मन ही मन निश्चय कर लिया.
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गर्मी के दिन थे, इसलिए एक बगीचे में पढ़ाई चलती थी. एक दिन बादशाह सलामत भी घूमते हुए उसी बगीचे में तशरीफ लाये. शहजादी ने सोचा कि आज अच्छा मौका है. क्यों न आज ही मैं अपना करिश्मा बता दूँ? उसने बाल बिखेर दिये, चोली फाड़ दी और जोरों से चिल्लाहट की "हाथ मत डालियो, हाथ मत डालियो, हाथ मत डालियो !”
चिल्लाहट सुनते ही बादशाह दौड़कर शहजादी के निकट पहुंचते हैं, तब तक वह बेहोश होकर गिर पड़ती है. बादशाह अपनी बेटी की दुर्दशा देखकर समझते हैं कि इस मौलवी ने ही कोई छेड़-छाड़ की होगी. आगबबूला होकर वे अपने सिपाहियों को आदेश देते हैं कि इस मौलवी को सूली पर चढ़ा दो सिपाही मौलवी को पकड़ कर ले जाते हैं. मौलवी हैरान परेशान. उन्हें कुछ समझ में नहीं आया कि यह सब क्या हो रहा है.
इधर शाहजादी को होश में लाने के लिए चेहरे पर ठंडा पानी छांटा गया, वह तो होश में ही थी, बेहोशी का अभिनय कर रही थी.
सुप्त को जगाना सरल है, परन्तु जागृत को जगाना बहुत कठिन है, अज्ञानी को समझाया जा सकता है, ज्ञानी को और भी जल्दी समझाया जा सकता है, परन्तु अधूरे ज्ञान का घमण्ड करने वाले को समझाना अत्यन्त कठिन होता है :
अज्ञः सुखमाराध्यः सुखतरमाराध्यते विशेषज्ञः । ज्ञानलवदुर्विदग्धं, ब्रह्मापि तं नरं न रंजयति । ।
[ अज्ञ को आसानी से समझाया जा सकता है, विशेषज्ञ को और भी अधिक आसानी से समझाया जा सकता है; परन्तु थोड़े से ज्ञान को पाकर जो अपने को बहुत बड़ा ज्ञानी मान
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