Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir धर्म २१ उत्सर्ग कर दिया पर अपने पंथ की वफादारी का त्याग नहीं किया. गुरू गोविन्दसिंह को जब यह समाचार मिला कि आपके दोनों पुत्रों ने इस प्रकार मृत्यु का वरण किया है तो गुरू गोविन्दसिंह जरा भी विचलित नहीं हुए. उन्होंने आदेश दे दिया- पूरे पंजाब में आज दीवाली मनायी जाये और मिठाई और प्रसाद बांटा जाये. मेरे लड़कों ने शेर की तरह मृत्यु का आलिंगन किया है. धर्म की वफादारी के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया. एक दो नहीं यदि मेरे हजार लड़के भी इस उद्देश्य पर मिट जाय तो मुझे शोक नहीं होगा. धर्मो रक्षति रक्षितः, जो आत्मा अपने जीवन में धर्म का रक्षण करती है, धर्म उसका हर हालत में रक्षण करता है. जो आत्मा के साथ गद्दारी करेगा, समय आने पर कर्म का विस्फोट टाइम बम की तरह उसका सर्वनाश करके चला जायेगा. किस तरह से इन्सान धर्म के प्रति वफादार रहे. उसका यह नमूना है. पूरे पंजाब में इस वलिदान की अनुमोदना की गई. प्रसाद बांटा गया, खुशियां मनाई गईं. इसी तरह शत्रुंजय तीर्थ पर एक बार आक्रमण हुआ. वह समय था जव तीर्थ पूर्णतया अरक्षित था. जव उसके रक्षण का प्रश्न आया, कोई साधन रक्षण के लिए वहाँ पर नहीं था. बड़ी चिन्ता का विषय था. वहाँ के जो वारोट थे बह्मभट्ट, उन्होंने अपनी पंचायत में निर्णय किया - किसी भी तरह से इस आदिनाथ भगवान के तीर्थ शत्रुंजय का रक्षण करना है. श्री संघों ने हम पर विश्वास करके यह तीर्थ छोड़ रखा है तो हम भी इसका पूर्ण वफादारी से रक्षण करे. वे जैनतर बन्धु थे परन्तु निष्ठा कितनी ? उन्होंने सोचा- अगर मुकावला करेंगे तो गाजर मूली की तरह कट जायेंगे. किसी तरह का साधन तो मुकावले के लिए अपने पास है नहीं. उन्होंने मुख्य द्वार बन्द कर दिया. जव सेनापति अपनी सेना को लेकर ऊपर मुख्य द्वार तक पहुंच गया तो एक वाट वाहर निकला और हाथ जोड़कर सेनापति से वोला परमात्मा के रक्षण के लिए कुछ नहीं है हमारे पास. तुम जो चाहो करो, मेरी गर्दन तुम्हें अर्पण है. मेरे प्राण लेने के बाद ही तुम अन्दर प्रवेश कर सकोगे. वारोट की गर्दन सेनापति ने काट दी. दूसरा निकला, तीसरा निकला, इसी तरह एक-एक करके वारोट निकलते रहें, निवेदन करके प्राण विसर्जन करते रहें. छप्पन बारोट अपने प्राण दे चुके थें. वहाँ तड़पती हुई लाशों से, वह हृदय विदारक दृश्य देखकर सेनापति का हाथ रुक गया. मन में भय का प्रवेश हुआ. इन ब्रह्मभट्टों का इस तीर्थ से कोई लेना देना नहीं. जैनेतर होकर भी प्रभु के प्रति भक्ति कैसी कि आदिनाथ भगवान का नाम लेकर हंसते-हंसते बड़े प्रेम से अपने प्राणों की आहूति दे रहे हैं. सेनापति का सिर शर्म से झुक गया. उसने तलवार म्यान में डाल दी और वापस चला गया. For Private And Personal Use Only - वाद में जब श्री संघों तक समाचार पहुंचा, उनकी अनुमोदना की और निर्णय लिया कि मन्दिर का सारा चढ़ावा आज से इन वारोटों का होगा. इतिहास कदम-कदम पर साक्षी है कि धर्म की वफादारी के लिए संप्रदायों को गौण कर दिया गया और धर्म के लिए अनेकों ने अपने प्राण अर्पण कर दिये.

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