Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 30
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९ धर्म वाला आया तो नवाव साहब ने फरमाया - मुझे इत्र से एलर्जी है जुकाम हो जाता है. ऐसा करो घोडी की पूंछ में लगा दो. मैं बग्घी में बैठ कर घूमने जाता हूँ तो उसकी पूंछ के हिलने से मुझे खुशबू मिलती रहेगी. नवाब साहब ने अंग्रेजों को जवाब दिया-मैंने बहुत आवाज दी पर कोई नौकर नहीं आया जो आकर मेरे को जूता पहिना दे. इसी प्रतीक्षा में बैठा रहा. परिणाम स्वरूप पकड़े गये. वह झवेरी आठ माइल दौड़ने के वाद जहाँ पहुंचे वहाँ मालगाड़ी खड़ी थी. ड्राईवर के पास जाकर हाथ जोड़े पांव पकड़ा अपने जीवन की भीख मांगी. दो हजार रुपये देकर किसी तरह मालगाड़ी में बैठे और माण्डले पहुंचे. वहाँ से चालीस दिन तक पैदल चलकर भारत की सीमा पर पहुंचे. वस्त्र फट चुके थे. रास्ते में खाने को नहीं, पीने को नहीं. नाना प्रकार की बीमारियों को झेलते हुए बम्बई पहुंचे, यहाँ पर थोड़ी बहुत सहायता लेकर किसी तरह अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं. इसलिए सम्राट् भोज ने कहा 'संचितमपि नश्यति'. विनाश काल के आने पर कितना भी संचय किया हुआ हो, कोई काम नहीं आता. सेकण्डवार के समय में कलकत्ते में भी हमले की जब आशंका हुई तो ब्रिटेन के अंग्रेज अधिकारियों ने सारी संपत्ति राशन हथियार वगैरह को एक ऐसे स्थान पर संग्रह करने का निर्णय किया, जहाँ से उनकी सेना पूरे साउथ ईस्ट एशिया में सप्लाई कर सके. फिलीपाइन्स के जंगलों में एक टापू पर उन्होंने सारा सामान भेज दिया. लेकिन क्या हुआ? जापान के जासूसों ने पता कर लिया और समाचार अपने देश में भेज दिया. वहाँ से सवमरिन उस सामान को लूटने के लिए रवाना हो गये. अंग्रेजों को जब पता चला तो उन्होंने ऑर्डर दे दिया - सारा सामान पानी में डुवा दो ताकि जापानियों के हाथ न लगे. सारा सामान डुवा दिया गया. वह किसी के काम नहीं आया. धर्म जीवन का परम तत्व : धर्म विचार के माध्यम से पुष्ट बनता है, सत्य इसका प्रोटीन है. सत्य के आचरण से धर्म पुष्ट वनता है. कर्म दुर्वल वनता है. कर्म केन्सर या टी. वी. उत्पन्न करता है. आत्मा में या आराधना में केन्सर न हो, टी. वी. न हो, इसका हमें ख्याल रखना है. इसलिए हमें धर्म की आराधना करनी है. गलत दिशा बदल डालिये. सव कुछ प्राप्त हो जायेगा. इसके लिए हमें सोचना है कि क्या बोलना है? कैसे वोलना है? धर्म का प्रारम्भ मुख से होता है और अन्तर् अर्थात् आत्मा में उसकी पूर्णता होती है. एक वार धर्म को प्रारम्भ करो, उसके लिए प्रयास करो, उसको प्रेक्टिकल वनाओ तो आत्मा पूर्ण वनेगी. आप क्या जानते हैं? इसका कोई मूल्य नहीं आप क्या करते हो, उससे मतलव है. प्रतिक्रमण को सिर्फ धर्मस्थान तक ही जीवित नहीं रहना है, घर में, दुकान में भी जीवित रखना, यही धर्म है. आपके आचरण से ही आपका परिचय होगा. शब्द के विना भी अनुभव सहज में प्राप्त होगा. इत्र की दुकान का विज्ञापन For Private And Personal Use Only

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