Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ जीवन दृष्टि भेंट इत्यादि देते. राजा भोज के महामंत्री ने सोचा - इस तरह से अगर राजन् देते रहें तो सारा खजाना ही खाली हो जायगा. परन्तु सम्राट के सामने जाकर निवेदन करने की हिम्मत नहीं. उसने उपाय निकाला और सम्राट के सोने के कमरे में दीवार पर लिख दिया - 'आपदर्थं धनं रक्षेत्' अर्थात आपात काल के लिए धन की रक्षा करनी चाहिये. राजा भोज रात्रि में सोने के लिए आये और दीवार पर लिखा देखकर समझ लिया कि ये कार्य महामंत्री का है. मुझे समझाने के लिए लिखा है, राजा भोज स्वयं विद्वान थे. उन्होंने लिख दिया - ‘श्रीमतां कुत आपदः'. अर्थात् भाग्यशाली व्यक्तियों के पास आपत्ति आती नहीं. महामंत्री ने जव सुबह जाकर देखा तो विचार किया - राजा ने जवाब तो वरावर दिया है. उसने लिखे वाक्यों को मिटाकर पुनः लिखा - 'कदाचित् कुपितो दैवः'. अर्थात् शायद भाग्य फिर जाये, या ऐसा ही कोई संकट आ जाय, उस समय के लिए धन संचय करना है. महाराज भोज ने रात्रि को आकर देखा और उसे मिटाकर लिख दिया - ‘संचितमपि नश्यति' अर्थात् कितना ही संग्रह करो, उसका नाश होना निश्चित है. जब भाग्य साथ नहीं देगा तो सम्पत्ति कोई काम नहीं आएगी. बम्बई के एक झवेरी से मेरी मुलाकात हुई थी. उसने अपनी करुण कथा मुझे वताई. मेरे पास रंगून के अन्दर सब कुछ था. मैं वहाँ का प्रतिष्ठित जौहरी था. आराम से दिन कट रहे थे. सेकण्ड वार का समय था कि अचानक जापान ने आक्रमण कर दिया. दो चार दिन निकल गये, परन्तु वहाँ की सरकार मुकावला न कर सकी. उसने प्रजा को सूचित कर दिया - सभी व्यक्ति अपना रक्षण स्वयं करें. मैं सोचने लगा कि इतनी वड़ी सम्पत्ति का ट्रान्सफर कैसे करूँ. भोजन कर रहा था कि सायरन बजा, आक्रमण शुरु हो गया था. तीस चालीस हवाई जहाजों ने एक साथ अटैक किया था. वम गिरने लगे. आसपास की विल्डिंगें धड़ाधड़ गिरने लगी. ऐसा भयंकर ताण्डव मचा कि लोग घबरा गये, भोजन छोड़ दिया और जान बचाकर वहाँ से भागे. तिजोरियों की ओर देखने का भी समय नहीं था. ऐसी विषम परिस्थिति में घर छोड़कर निकल भागे कि जो व्यक्ति अपने जीवन में कभी पैदल नहीं चला, आठ माइल तक लगातार नंगे पांव दौड़कर जान बचाई. परिस्थितियां सब कुछ करा देती हैं. जवानी के अन्दर हमारे अंदर वड़ा जोश होता है फिर अगर पैसा मिल जाय तो क्या पूछना. जैसे बंदर को शराव पिला दी हो इसीलिए कवि ने कहा उछल लो, कूद लो, जब तक है जोर नलियों में । याद रखना इस तन की उड़ेंगी खाक गलियों में ।। नवाब वाजिद अलीशाह जव पकड़े गये तव तक लखनऊ को अंग्रेजों ने चारों तरफ से घेर लिया था. सारे दास-दासियां, खानसामा तक भाग गये थे. अंग्रेज अधिकारी जव नवाव के पास आये तो वे बड़े आराम से बैठे थे. अंग्रेजों ने उनसे पूछा-आपके सभी आश्रित भाग गये, आप भी भाग सकते थे, फिर क्यों बैठे रहें. नवाव साहव की रईसी इतनी कि एक इत्र वेचने For Private And Personal Use Only

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