Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 37
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ जीवन दृष्टि श्रेष्ठ मानव का निर्माण करना है. भारत में नवजागरण का मूलाधार धर्म रहा है. सबसे पहले दयानन्द और विवेकानन्द ने धार्मिक सामाजिक जागरण उत्पन्न किया, तिलक ने कर्मठता का शंखनाद किया और तब सारी शक्तियों को समन्वित करने गांधी आये. गांधी की राजनीतिक-सामाजिक सफलता का एक महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि उनके सारे कार्य धर्म से अनुप्राणित थे. अनेक मनीषियों का विचार है कि भारत में कोई भी आन्दोलन तभी सफल हो सकता है जब उसका मूल धर्म में हो. भारत धार्मिक देश है इसका अर्थ यही नहीं है, कि यहाँ धर्म के अतिरिक्त अन्य वस्तुओं का महत्त्व नहीं है। इसका अर्थ यही है कि यहाँ के सारे कार्य धर्म के द्वारा अनुप्राणित होते हैं. धर्म के क्षेत्र में भारत से दूसरे देशों ने बहुत सीखा है यह गर्व की बात हो सकती है किन्तु यह सन्तोष कर लेने योग्य बात नहीं है. यह अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं है कि किसने किससे क्या सीखा है; बल्कि विशेष महत्त्वपूर्ण तो यह है कि सभ्यता और संस्कृति की दौड़ में कौन सबसे आगे है. प्रश्न यह है कि आधुनिक युग में धर्म का क्या स्वरूप हो? यह प्रश्न इतना गहन है कि जिन शब्दों की सीमा में इस विषय के विस्तार में जाना सम्भव नहीं है, संकेत-रूप में ही कुछ बातें कही जा सकती हैं. जहाँ तक हिन्दू धर्म का प्रश्न है, इसी धर्म का एक पक्ष तो रूढ़ियों, रीति-रिवाजों एवं पौराणिक विश्वासों का है जो आधुनिक युग के ज्ञान और तर्क की कसौटी पर पुराना पड़ चुका है. वस्तुतः यह धर्म नहीं वरन् उसका ऊपरी आवरण है. हिन्दू-धर्म का दूसरा पक्ष तत्त्वज्ञान का है जिसमें वेदांत, उपनिषद और गीता आते हैं एवं बौद्ध दर्शन भी इसी धारा का एक विशिष्ट विकास है. हिन्दू धर्म के तत्त्वावधान का यह पक्ष आधुनिक ज्ञानविज्ञान कहना अधिक समीचीन लगता है. सी. जी. जुंग ने अपने इन्टेग्रेशन ऑफ पर्सनलिटी एण्ड क्लेटिव अनकान्शस के सिद्धान्तों के माध्यम से भारतीय आत्म-विज्ञान को मनोविज्ञानक रूप में प्रस्तुत किया है और वे इसे जीवन का उद्देश्य मानते हैं. आधुनिक युग में धर्म का वही रूप समीचीन है जिसमें धर्म के आवरण को अलग कर तत्त्वज्ञान को ग्रहण किया जाये एवं सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन में क्रियान्वित किया जाये. आज भारत में मूल समस्या यह है कि धर्म का तत्त्व जीवन से दूर जा पड़ा है, उसे जीवन में आत्मसात् करने की आवश्यकता भारत में धर्म प्रेम और देश प्रेम का स्वरूप कभी भी आक्रामक और परपीडक नहीं रहा. हम सदैव 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के आदर्श से अनुप्राणित रहें हैं. हिन्दू धर्म के मूल्य मतवादों एवं दुराग्रहों से बंधे नहीं है वरन् वे सार्वभौमिक जीवन-मूल्य हैं. आज जब देश और काल की दूरियां कम हो गई हैं, विश्व स्तर पर एकता और बन्धुत्व की स्थापना के लिए सार्वभौमिक जीवन मूल्यों की आवश्यकता पहले की अपेक्षा कहीं अधिक है. राजनैतिक व्यवस्थाएँ बदलती रहती हैं किन्तु जीवन के विकास की दिशा नहीं बदलती. इस देश में भविष्य में कोई भी राजनीतिक व्यवस्था आये, उससे धर्म की स्थिति में अन्तर नहीं पड़ता. अपनी धार्मिक विरासत का सतत् विकास कर हम न केवल अपने देश में श्रेष्ठतर मानवता का निर्माण कर सकेंगे वरन् विश्व मानवता के निर्माण में भी अपना योगदान कर सकेंगे. For Private And Personal Use Only

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