Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 44
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवन में सदाचार ३३ का समाचार सुनकर हर्ष के आंसुओं से भरतजी के कपोल भीग गये. वे इस तरह नाचने लगें, मानों उन्हें कोई रत्नों का खजाना मिलने वाला हो?" यह सुनकर श्रीराम सन्तुष्ट हुए, उन्होंने भरतजी को प्रसन्न करने के लिए अयोध्या लौटने का निश्चय कर लिया. आज क्या दशा है? पिता की मृत्यु के बाद भाइयों में सम्पत्ति के बँटवारे का झगड़ा शुरू हो जाता है, मुकदमेबाजी शुरु हो जाती है और अड़ोसी-पड़ोसी भी उन्हें एक-दूसरे के विरुद्ध भड़काकर तमाशा देखने लगते हैं. सदाचार पथ्य है : सदाचार का पोषण करने के लिए प्राचीन काल में लोग धर्म शास्त्रों का स्वाध्याय करते थे. भजन गाते थे. प्रार्थना या स्तुति करते थे, परन्तु आजकल क्या करते हैं? सुबह उठते ही रेडियो से या टेपरेकार्डप्लेयर से फिल्मी गाने सुनते हैं, जो कानों के द्वारा मन को मीठे जहर से भिगोते हैं. फलस्वरूप जीवन सदाचारी न बन कर व्यभिचारी या बलात्कारी बन जाता है, हम जानते हैं कि पथ्य का पालन न किया जाय तो कोई भी औषध रोगी को निरोगी नहीं बनता सकती.धार्मिक क्रियाकांड औषध के समान हैं और सदाचार पथ्य के समान है. सदाचार के साथ किये गये धार्मिक क्रियाकाण्ड ही मन को स्वस्थ या निर्मल बनाते हैं. प्राचीन शास्त्र कहते हैं : “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते । रमन्ते तत्र देवताः।" [जहाँ नारियों का समामन होता है वहाँ देवता रमण, करते हैं.] धर्मशास्त्र की यह वात आज कहाँ है? यहाँ तो पद-पद पर नारी जाति का अपमान होता है. उसे भोग सामग्री माना जाता है. उसे 'पैरों की जूती' कहा जाता है. हम राम और लक्ष्मण की चर्चा करते हैं, परन्तु चरित्र हमारा रावण से भी बुरा बन कर रह गया है. रामायण में लक्ष्मण का चरित्र : शील धर्म का आदर्श देखना हो तो लक्ष्मण के चरित्र में देखिये. अपहृत सीता के प्राप्त अलंकारों को पहचानने का आदेश पाते ही लक्ष्मण श्रीराम से कहते हैं : नाहं जानामि केयूरे, नाहं जानामि कुण्डले । नूपुरे त्वभिजानामि, नित्यं पादाभिवन्दनात् ।। भाईसाहब! मैं बाजूबन्दों को नहीं जानता (क्योंकि कभी उनके सुन्दर हाथों को-भुजाओं को For Private And Personal Use Only

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