Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्य सदाचार कि राजा बड़ा धर्मात्मा बना फिरता था. व्रत नियम लेकर पूरे गुजरात को लूटा बैठा. भगवन्, मेरी प्रतिज्ञा को लोग मेरी कमजोरी न समझ लें. कहीं इससे धर्म की मर्यादा नष्ट न हो जाये. __ आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने कहा- तुमको नियम मैंने दिया है, अब मुझे देखना है कि मैंने जो नियम दिया, उसका पालन कैसे कराना है? प्रचण्ड शक्ति के स्वामी आचार्य हेमचन्द्रसूरि ने अर्द्ध रात्रि के समय अपनी शक्ति का स्मरण किया और उस मुसलमान सेनापति को जो पाटण के बाहर घेरा डालकर अपने पड़ाव में सो रहा था, सोये-सोये पलंग सहित उठवाकर मंगा लिया. आज भी कई ऐसे योगी पुरुष मौजूद है. कुछ मेरे परिचय में भी हैं पर वे अपनी योग शक्ति का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं करते. मुसलमान सेनापति को जब पलंग सहित मंगवा लिया तो प्रातः काल दर्शन करने आये कुमारपाल को आचार्य भगवन्त ने कहा-राजन्, अपने राजमहल में जाकर देखो. तुम्हारा महेमान आया हुआ है. कुमारपाल महाराज राजमहल में गये, हाथ में नंगी तलवार थी और उधर सेनापति की आंख खुली. सेनापति ने देखा-स्वयं सम्राट कुमारपाल हाथ में तलवार लेकर उसके सिर पर खड़े हैं. उसने पूछा- यह स्वप्न है कि सत्य? उत्तर मिलायह सत्य है, स्वप्न नहीं. यह मौत तेरे सिर पर खड़ी है. भयभीत सेनापति ने उसी समय अपने कुरान और खुदा की कसम खाई-अब कभी गुजरात की तरफ आंख उठा कर भी नहीं देगा. ये मेरा वचन है. कुमारपाल ने वचन लेकर उसे माफ कर दिया और कहा-जब तक हेमचन्द्रसूरि जैसे महान आचार्य जीवित है, कुमारपाल जिन्दा है तब तक गुजरात की तरफ भूल से भी आंख उठाकर मत देखना. ये गर्जना, ये शक्ति आई कहाँ से? ये सब उसी सदाचार और ब्रह्मचर्य तप का प्रभाव था. आज स्थिति यह है कि सारा दिन माला फेरते निकल जाता है. सारी उम्र निकल जाती है फिर भी कुछ उपार्जन नहीं? कारण-आपके शब्द में प्राण ही नहीं होता. शब्दों में शक्ति ही नहीं रही जो देवताओं को आमन्त्रण दे सके. याद रखना आपकी योग्यता देखकर ही देवता आमन्त्रण स्वीकार करेंगे. आपमें सदाचार का बल होगा, संयम का तप होगा, योग्यता होगी, पुण्य बल होगा तभी आपका आमन्त्रण स्वीकार होगा. नहीं तो सारी जिन्दगी निकल जाय, आपका आमन्त्रण स्वीकार नहीं होगा. सदाचार का बल : राम की रामायण हम पढ़ते हैं किन्तु आदर्श ग्रहण करने को रूचि कभी नहीं हुई. राम ने सीता हरण होने पर लक्ष्मण से रास्ते में गिरे हुए आभूषणों को देखकर पूछा कि क्या ये सीता के आभूषण हैं? तो लक्ष्मण ने क्या कहा? उसने कहा- भाई, मैं तो माता सीता की चरण वन्दना प्रतिदिन करता हूँ इसीलिए नूपुर तो पहचान सकता हूँ पर शेष शरीर की ओर मेरा ध्यान कभी नहीं गया. अतः मैं अन्य आभूषणों को नहीं पहचान सकता. कहाँ गई हमारी वह नैतीकता, कहाँ गया वह सदाचार, वह सत्यनिष्ठता, वह प्रामाणिकता? For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134