Book Title: Jivan Drushti
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवन दृष्टि १२ नहीं है. परन्तु इसके परिचय में सर्वप्रथम यह समझना पड़ेगा कि धर्म का आगमन उपशम भाव में होता है और उसी उपशम भाव का रक्षण करने वाला प्रेम माना गया है जिसे यहाँ शास्त्र की भाषा में मैत्री कहा गया है. सभी प्राणिमात्र के साथ यदि आत्मतुल्य व्यवहार हो जाये और स्वयं की आत्मा की दृष्टि हमें मिल जाये, तो यह देखना भी धर्ममय वन जायेगा. वह संपूर्ण व्यवहार मित्रवत् वन जायेगा. एक छोटे से बीज के अंदर में इतना विराट तत्व छिपा है जिससे एक वृक्ष वनता है, ठीक उसी प्रकार एक छोटे से सद् विचार के अंदर वीतराग छिपा है. याद रखे, यह विराट तत्व अपने अन्दर में ही छिपा है. विचार के बीज के अन्दर से इसको प्रकट करना है. प्रकट करने के लिए ही पुरुषार्थ करना है. एक बालक के अन्दर जिस प्रकार पिता का गुण छिपा होता है, वही आज का बालक कल भविष्य में पिता बनेगा. याद रखिये उस पिता में ही परमपिता अरिहन्त छुपा है. साधना पूर्वक इसे प्राप्त कर लेना है. आजीविका और धर्म : हमारे जीवन के कर्तव्य का ही दूसरा नाम है- धर्म नैतिक दृष्टि से क्या करने योग्य है, उसी को हमारे यहाँ धर्म माना गया है. आत्मा के प्रतिकूल आचरण को अधर्म माना गया है. आत्मा के वर्तुल में रहकर उसके अनुकूल कार्य करना है. जीवन के व्यवहार से अपनी आत्मा में कलंक न लगे. सम्पूर्ण जीवन को धर्ममय बनाना है, ऐसी साधना करनी है. में धर्म का प्रारम्भ कैसे हो, इसी का परिचय दिया है. गृहस्थ जीवन प्रथम तो हमारे जीवन निर्वाह के लिए हम जो अर्जन करें, जो भी हमारी आजीविका हो वह प्रामाणिक हो. हमारी आजीविका अशुद्ध प्रकार से उपार्जन की हुई न होकर शुद्ध होनी चाहिये. साध्य की प्राप्ति के लिए साधन की शुद्धता अनिवार्य है, जैसे सर्जन ऑपरेशन से पहले अपने सभी औजारों को शुद्ध करता है, उसी तरह हमारे जीवन में धर्म साधना के प्रवेश के लिए आजीविका का प्रमाणिक होना, शुद्ध होना जरूरी है. परम श्रेष्ठ हमारा धर्मज्ञान जहाँ विकार का पोषण होता है वहाँ आत्मा का शोषण होगा. आजादी मिलने के ३६ वर्षों बाद भी गरीबी नहीं गई, अगर परमात्मा के वचनों को लेकर चले होते और धर्माचरण होता तो देश की यह स्थिति नहीं होती. नैतिकता का दुष्काल हो गया है हमारे यहाँ जो देश सारे विश्व को शिक्षा देता था. जिसने सारे विश्व को ज्ञान का प्रकाश दिया, उसी देश की आज यह स्थिति है कि वह विश्व हमारा टीचर वन गया. जो देश सारी दुनिया को खिलाकर खाता था, आज देश की स्थिति यह है कि धर्मादा लेकर अपना पेट भरते हैं. ये जो पी. एल. फण्ड For Private And Personal Use Only

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