Book Title: Jinendra Poojan
Author(s): Subhash Jain
Publisher: Raghuveersinh Jain Dharmarth Trust New Delhi

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ महावीराष्टकस्तोत्रम् [ कविवर भागचन्द ] शिखरणी भानुरिव यो भवतु मे ॥ १ ॥ 11911 यदीये चैतन्ये मुकुर इव भावाश्चिदचितः समं भान्ति ध्रौव्य-व्यय-जनि - लसन्तोऽन्तरहिताः । जगत्साक्षी मार्ग प्रकटन-परो महावीर स्वामी नयन-पथ - गामी अताम्र यच्चक्षुः कमल - युगलं स्पन्द रहितं जनान्कोपापायं प्रकटयति वाभ्यन्तरमपि । स्फुटं मूर्तिर्यस्य प्रशमितमयी वातिविमला महावीर स्वामी नयन - पथ - गामी भवतु मे ॥२॥ नमन्नाकेन्द्राली - मुकुट मणि-भा-जाल-जटिलं लसत्पादाम्भोज-द्वयमिह यदीयं तनुभृताम् । भवज्ज्वाला - शान्त्यै प्रभवति जलं वा स्मृतिमपि महावीर स्वामी नयन-पथ - गामी भवतु मे ॥३॥ यदर्चाभावेन प्रमुदित मना दर्दुर क्षणादासीत्स्वर्गी गुण- गण - समृद्धः सुख-निधिः । इह - ·

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 165