Book Title: Jeev Vigyan Author(s): Pranamyasagar Publisher: Akalankdev Vidya Sodhalay Samiti View full book textPage 7
________________ जीव-विज्ञान तत्पश्चात् जो भाव आता है वह है-मिश्र । इन मिश्र भावों को क्षयोपशम भावों के रूप में कहा जाता है। यहाँ आचार्य ने क्षयोपशम न लिखकर मिश्र' लिखा है । क्षायोपशमिक भाव में दो चीजें जुड़ी हुई हैं-क्षय और उपशम । इन दोनों का वर्णन पहले हो चुका है। जिसमें क्षय हो और उपशम हो उसे कहेंगे-क्षयोपशम । इसीलिए 'मिश्रः' जो शब्द यहाँ पर आया है वह क्षयोपशम भाव को बताने के लिए आया है और क्षयोपशम भाव को मध्य में रखा गया हैं। आगे भी दो भाव हैं, पहले भी दो भाव आ चुके हैं। क्यों रखा है? क्योंकि यह क्षयोपशम-भाव सभी जीवों में सभी भावों के साथ रह जाता है। इन पाँच भावों में से यह क्षयोपशम भाव सभी जीवों में मिल जाएगा । अर्थात् भव्य जीवों में भी मिल जाएगा, अभव्य जीवों में भी मिल जाएगा, मिथ्यादृष्टि जीवों में भी मिल जाएगा और सम्यग्दृष्टि जीवों में भी मिल जाएगा। इस कारण से मिश्र-भाव को यहाँ पर मध्य में रखा गया है और यह मिश्र-भाव सभी जीवों में रहता है इसलिए अनेक प्रकार के जो मिश्रभाव आगे बताए जाएंगे उनसे आपको ज्ञात होगा, कि क्षयोपशम-भाव के कितने भेद हैं? यहाँ पर अभी हमें केवल इतना समझना है कि औपशमिक-भाव से क्षायिक भाव वाले जीव असंख्यात गुणे हैं और क्षायिक-भाव वाले जीवों से भी असंख्यात गुणे जीव क्षयोपशम-भाव वाले हैं। लेकिन जो भाव हैं वह सम्यग्दर्शन सम्बन्धी जानना अन्य ज्ञानादि सम्बन्धी भावों को यहाँ पर नहीं लगाना है। क्षयोपशम- सम्यग्दृष्टि जीव क्षायिक- सम्यग्दृष्टि जीवों से भी अधिक होते हैं। इस अपेक्षा से भी हम इसको इस क्रम के अनुसार समझ सकते हैं। इसके बाद आता है औदयिक भाव । औदयिक और पारिणामिक इन दोनों भावों का भी आपस में गठबंधन है । 'औदयिक - पारिणामिको इन दोनों को मिलाकर एक पद बनाया है। औदयिक भाव वाले जीव और पारिणामिक-भाव वाले जीव भी आपको हमेशा मिलेंगे और जीव में औदयिक और पारिणामिक भाव नियम से मिलेंगे। इन भाव वाले जीवों की संख्या अनन्त होती है। ये औदयिक और पारिणामिक भाव सम्यग्दर्शन से सम्बन्ध नहीं रखते हैं। ये भाव सामान्य जीवों में पाये जाते हैं। भव्य, अभव्य सभी जीवों में ये औदयिक और पारिणामिक भाव मिलेंगे। इन भावों वाले जीव अनन्त संख्या में होते हैं इसलिए इन भावों को सबसे अन्त में लिखा गया है। इस तरह से इन पाँचों भावों का वर्णन यहाँ पर किया गया है। हमें जानना चाहिए कि संसारी जीवों में कौन-कौन से भाव हो सकते हैं ? संसारी जीवों में भी जो मिथ्यादृष्टि हैं उनमें कौन से भाव होंगे और जो सम्यग्दृष्टि जीव हैं उनमें कौन से भाव होंगे? मुक्त जीवों की चर्चा आगे की जाएगी। हमें यह समझना है कि संसारी जीवों में जो जीव अभी मोक्षमार्ग पर नहीं लगे हैं, जिन जीवों में मोक्षमार्ग का श्रद्धान नहीं हुआ है, जिनको सम्यग्दर्शन आदि की प्राप्ति नहीं हुई है उन जीवों में न तो औपशमिक - भाव होगा न क्षायिक भाव होगा। उनमें मिश्र भाव होगा, लेकिन वह ज्ञान से सम्बन्धित होगा और दूसरे कर्मों से सम्बन्धित होगा लेकिन सम्यग्दर्शन से सम्बन्धित नहीं होगा । औदयिक और पारिणामिक भाव तो नियम से होंगे ही। कहने का तात्पर्य है कि औदयिक, 7Page Navigation
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