Book Title: Jayant Balbhadra Desh ka Rajkumar
Author(s): Ganpati Krushna Gurjar
Publisher: Granth Prakashak Samiti

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Page 6
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याकरण की अशुद्धियाँ जान पड़ती हैं, पर वास्तवमें वे व्याकरणकी नहीं छापेकी ही हैं । उदाहरण:-तू पूछ रही हो। इस वाक्य में 'हो' की पाई निकाल देनेसे वाक्य शुद्ध है । यह प्रूफ़-रीडरकी भूल है । कई अशुद्धियाँ प्रेस-मैनकी असावधानीसे हो गई हैं । छापते समय स्याहीके रोलर के साथ २ पाई, मात्रा तथा अनुस्वार लिपट कर स्थान-भ्रष्ट हो गये हैं । ये सब अशुद्धियाँ इसी संस्करणमें शुद्ध करदेना तो असम्भव है; पर यदि हिन्दी-प्रेमियोंकी इस नाटकपर कृपा दृष्टि हुई तो निस्सन्देह इसके दूसरे संस्करणमें हमारे पाठक ऐसी भद्दी अशुद्धियाँ न देख सकेंगे। ___अब ऊपर लिखे अनुसार समितिकी प्रकाशित की हुई और और पुस्तकोंकी संक्षिप्त सूचना देकर हम अपना निवेदन समाप्त करेंगे । सरल गीता। इसके पांच भाग हैं, (१) प्रस्तावना, ( २ ) पूर्ववृत्तान्त, ( ३ ) सरल हिन्दी अनुवाद, ( ४ ) मूल श्लोक, और (५) उपसंहार । (१) वर्तमान समयमें 'गीता' का क्या उपयोग है ? किस प्रकार किस देशके लोग उससे लाभ उठा सकते हैं और भारतवर्षको इस समय गीतापाठकी क्या आवश्यकता है ? गीता पारलौकिक सुख देनेका वादा करती है या इहलोक भी बनानेकी उसमें सामर्थ्य है ? इत्यादि महत्वपूर्ण प्रश्नोपर प्रस्तावनामें विचार किया गया है। (२) पूर्व वृत्तान्तमें बहुत संक्षेपसे वह वृत्तान्त दिया गया है जो श्रीकृष्णमुखसे गीताकथन होनेके पूर्व हुआ है। For Private And Personal Use Only

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