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व्याकरण की अशुद्धियाँ जान पड़ती हैं, पर वास्तवमें वे व्याकरणकी नहीं छापेकी ही हैं । उदाहरण:-तू पूछ रही हो। इस वाक्य में 'हो' की पाई निकाल देनेसे वाक्य शुद्ध है । यह प्रूफ़-रीडरकी भूल है । कई अशुद्धियाँ प्रेस-मैनकी असावधानीसे हो गई हैं । छापते समय स्याहीके रोलर के साथ २ पाई, मात्रा तथा अनुस्वार लिपट कर स्थान-भ्रष्ट हो गये हैं । ये सब अशुद्धियाँ इसी संस्करणमें शुद्ध करदेना तो असम्भव है; पर यदि हिन्दी-प्रेमियोंकी इस नाटकपर कृपा दृष्टि हुई तो निस्सन्देह इसके दूसरे संस्करणमें हमारे पाठक ऐसी भद्दी अशुद्धियाँ न देख सकेंगे। ___अब ऊपर लिखे अनुसार समितिकी प्रकाशित की हुई और और पुस्तकोंकी संक्षिप्त सूचना देकर हम अपना निवेदन समाप्त करेंगे ।
सरल गीता। इसके पांच भाग हैं, (१) प्रस्तावना, ( २ ) पूर्ववृत्तान्त, ( ३ ) सरल हिन्दी अनुवाद, ( ४ ) मूल श्लोक, और (५) उपसंहार ।
(१) वर्तमान समयमें 'गीता' का क्या उपयोग है ? किस प्रकार किस देशके लोग उससे लाभ उठा सकते हैं और भारतवर्षको इस समय गीतापाठकी क्या आवश्यकता है ? गीता पारलौकिक सुख देनेका वादा करती है या इहलोक भी बनानेकी उसमें सामर्थ्य है ? इत्यादि महत्वपूर्ण प्रश्नोपर प्रस्तावनामें विचार किया गया है।
(२) पूर्व वृत्तान्तमें बहुत संक्षेपसे वह वृत्तान्त दिया गया है जो श्रीकृष्णमुखसे गीताकथन होनेके पूर्व हुआ है।
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