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. (३) सरल हिन्दी अनुवाद पढ़कर मूल श्लोकोंका अर्थ भलीभांति समझमें आ जाता है। जहांतक संभव है । काठिन शब्दोंका प्रयोग नहीं किया गया है । स्थान स्थानपर टिप्पणियां देकर गीताका गूढ अर्थ समझानेकी चष्टा को गई है।
(४) मूल श्लोक भी इसलिये छाप दिये हैं कि अमृतपूर्ण देववाणीका आस्वाद भी पाठक ले सकें और जो लोग नित्यप्रति भक्तिपूर्वक गीता पाठ करते हैं उनका भी काम इस पुस्तकसे चलसके ।
(५) उपसंहारमें गीताकारके १८ अध्यायोंका सारांश देकर, मुख्य २ बातोंपर विस्तारसे लेख लिखे गये हैं और गीताके आदर्शके समीप पहुँचनेके लिये मनुष्यको अपना अरोग्य बना रखने और धन, यश, विजय आदि लाभ करनेके लिये तथा परमात्माकी अद्भुत लीलासे तादात्म्य पानेके लिये क्या क्या तैयारियाँ करनी पड़ती हैं उनका मोताधारपर विचार किया गया है ।
सारांश, आबाल-वृद्ध वनिता सबकी उन्नतिका मार्ग दिखानेवाला यह गीतारूपी दोपक है । मूल्य ॥)
महाराष्ट्र-रहस्य । धर्मसे भी बढ़कर कोई महान् शक्ति है ?
संसारको चलानेवाला कौन है ? संसारका स्वामित्व किसके अधीन है ? बिजय वैजयन्ती किसकी फहरती है !
गंभीर विचारके बाद यही उत्तर आता है:-'धर्म ।'
इसो धर्मबलके कारण इतिहासमें महाराष्ट्रका नाम अजर-अमर हो चुका है ! इसी धर्मसत्तामे आजभी भारतवर्षके किसी राज्यसे महाराष्ट्र राज्य-समूह किसी बातमें कम नहीं है !
इस पुस्तकके देखनेसे पता लगेगा कि शिवाजी या बाजीराव डॉक
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