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ला सकें, और अपनी और समाज की प्रगति करने के लिये भाग्यशाली बनें, इस लिये आकर्षक भाषा शैली में जैन तत्त्वज्ञान विषयक और आचारविषयक पुस्तक ज्यादा प्रमाणमें प्रगट करने के लिये आप भाग्यशाली बने ऐसी इच्छा करता हूं। सुरत पंडोलकी पोळ. ली. सुरचंद्र पी. बदामीका ता. ८-५-३२
जय जिनेन्द्र
उपरोक्त अभिप्राय बदामी महाशयने गुजराती द्वितीयावृत्ति के लिये लिखा है, इसी परसे हमारे प्यारे विद्यार्थीगण और सज्जनवृन्द अनुमान कर सकते है कि यह पुस्तक जैनतत्त्व का अभ्यास करने के लिये कितना उपयोगी हो सकता है।
जैनतत्त्व सार की मूल प्रति कीस तरह प्राप्त हुई उस का वृत्तान्त जैन आत्मानन्द सभा भावनगर के प्राणभूत और हमारी संस्था के स्था. सेक्रेटरी रा. रा. श्रीयुत वल्लभदास त्रिभोवनदास के कथनानुसार प्रथमावृत्ति में प्रगट कर चुका हैं। इसी लीये उम्र का उल्लेख यहां करना निरर्थक समझता हूं। अभी वह समय नहीं है कि बडे २ बाह्य और अच्छे २ अलंकारो से पुस्तक का कद बढाना और कठिनता करना। अभी तो Short & sweet "छोटा और मधुर" प्रमाणभूत लिखेगा तभी हरकोई शख्स उस को पढ सकता है। और लाभ पा सकता है यह बाबतं खास लक्ष्य में रखकर यह पुस्तक प्रगट . किया जाता है।