________________
(६०) काल ( जिस काल में जो कुछ होनेवाला हो वह ) स्वभाव ( जीव को ग्रहण करने का) नियति ( भवितव्यता, होनहार ) पूर्वकृत ( जीवने पहले जो कर्म किये वे ) पुरुषकार ( जीव का उद्योग)
जैसे कोई धनवान मनुष्य भवितव्यता से प्रेरित होकर स्वादिष्ट मिठाई और खल को जानता हुश्रा भी खल को खाता हैं। कोई मुसाफिर इष्टस्थान को पहुंचने के वास्ते शुभाशुभ स्थानों का उल्लंघन करता हैं। चोर, परस्त्रीगामी, व्यापारी, मतधारी और ब्राह्मण जानते हुए भी शुभाशुभ कृत्य को करते हैं । भिक्षुक, बंदिजन ( भाट इत्यादि ) और तत्त्वज्ञानी, योगी, भिक्षा को स्निग्ध (घृतादि स्नेह से युक्त) अथवा रस युक्त जान कर के जैसी मिली वैसी आरोगते हैं । युद्ध में घिरा हुआ शूर जानता हुआ भी शत्रु, मित्र की हत्या करता है और रोगी कुपथ्य को जानता हुआ भी भवितव्यता से उस का सेवन करता है। प्र-जीव, ज्ञान के विना कर्मों को क्या ग्रहण कर सकता है ? उ-बिना ज्ञान लोहचुम्बक जैसे लोह को खिंचता है वैसे
कालादि से प्रेरित जीव भी विना ज्ञान समीपस्थ शुभाशुभ कर्मों को खिंचता है।