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चीर, अम्बर आदि शब्दों का एक ही अर्थ है ऐसा यह नय समजता है ।
प्र० समभिरुढ नय किस को कहते हैं ?
४० एक वस्तु का संक्रमण जब अन्य किसी वस्तु में होता है तब वह अवस्तु हो जाती है । जैसे 'ईन्द्र' यह शब्दरूप वस्तु का संक्रमण ‘शक्र' शब्द में होता है तब इन्द्रवाचक शब्द भिन्न हो जाता है अर्थात् इन्द्र शब्द का अर्थ ऐश्वर्यवान, शक शब्द का अर्थ सामर्थ्यवान और पुरंदर शब्द का अर्थ शत्रु के नगरों का नाश करनेवाला होता है । ये सब ही शब्द इन्द्रवाचक है किन्तु अर्थभेद से वे भिन्न भिन्न हैं ऐसा समभिरुढ नय स्वीकार करता है ।
प्र० एवंभूत नय किस को कहते हैं ?
so स्व कार्य को करती हुई साक्षात् वस्तु को वस्तुरूप से मानना चाहिए जैसे 'घट' शब्द, इस में 'घट' वह प्रयोजक धातु है और इस का अर्थ चेष्टा करना यही है अर्थात् जब 'घट' जलहरण आदि में प्रवृत्त होता है तव ही उस को घट कह सकते हैं अन्यथा नहीं एसा इस नय का मन्तव्य है ।