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| संग्रहनय में सामान्य की मान्यता है किन्तु विशेष की नहीं है । उस की व्याख्या निम्न लिखित है
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सामान्य रूप से सर्व वस्तुओं को खुद में अन्तर्गत करता है, अर्थात् सामान्य ज्ञान के विषय को कहता है ।
प्र० व्यवहार नय किस को कहते हैं ?
उ० इस नय में विशेष धर्म की मुख्यता है क्यों कि अगर आम्रादि फल विशेष न कहते हुए फल कहने से वह कौनसा फल लावेगा । इस लिए यह नय सामान्य को न स्वीकारता हुआ विशेष को ही मान्य करता है ।
प्र० ऋजुसून नय किस को कहते हैं ?
उ० यह नय वर्तमान समयग्राही है । वस्तु के नये नये रूपां - तरों की और हमारे लक्ष्य को खिंचता है । दृष्टान्त-जैसे सुवर्ण के कंकरण - कुण्डल आदि पर्यायों को यह नय देखता है किन्तु मूल द्रव्य की ओर वह दृष्टिपात नहीं करता और इसी लिये पर्याय विनश्वर होने से इस नय की अपेक्षा से सदा द्रव्य कोई नहीं है ।
प्र० शब्द नय का क्या स्वरूप है ?
उ० शब्दनय अर्थात् अनेक पर्याय शब्दों का अर्थ स्वीकार करना, यह इस नय का काम है । जैसे- इन्द्र को शक्र, पुरन्दर आदि नाम से कहता है वह शब्द नव है । वस्त्र,