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PEDIA
ATHA
VACAS.
द्वितीय अधिकार.
जीव का स्वभाव कर्मग्रहण करने का है । प्र-कर्म जड हैं तो क्या वे स्वयं जीव का प्राश्रय ले
- सकते हैं ? - उ-हां, जैसे लोहचुम्बक लोहे को अपनी ओर खिंचता है
वैसे कर्म भी स्वयं प्राश्रय के वास्ते समर्थ हैं। प्र-आत्मा बुद्ध (चेतनायुक्त ) हैं । और इस कारण से
शुभकर्मों का ग्रहण करे यह तो स्वाभाविक है । क्यों कि जीव सुख का अभिलाषी होता है। मगर जब उस
को दुःख अप्रिय है तब अशुभ कर्मों को क्यों ग्रहण .. करता है ? . . . . . उ-जीव सुख दुःख के जो पांच हेतु ( समवाय ) है उन
की प्रेरणा से वह समजता हुआ भी शुभाशुभ कर्मों को ग्रहण करता है। पांच हेतु के नाम इस तरह हैं।