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और भी लोक में माना जाता है कि अशोकवृक्ष की छाया शोक हरण करती है, बेहडे की छाया कलहकर होती है, बकरी के खुरसे उडनेवाली धूली पुण्य नाश को होती है । चाण्डालादिकी छाया भी पुण्य का ह्रास करती है । सगर्भा स्त्री की छाया उल्लंघन करनेवाले भोगी पुरुष का पौरुषत्व नष्ट होता है और महेश्वरी की छाया को उल्लंघन करनेवाले पर महेश्वर नाराज होते हैं । इस तरह अनेक अजीव पदार्थ भी दुःख सुख के निमित्त होते हैं तब परमात्मा की मूर्ति सुख के लिए क्यों न हो ?
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प्र० परमेश्वर के दर्शन से भक्तों के पापों का नाश होता है यह तो सत्य है, परन्तु पूजन से क्या लाभ होता है यह कहिए ।
उ० दर्शन से जैसा लाभ हातो है वैसा ही लाभ पूजन से होता है । जिस को जैसी जैसी अवस्था गुण विशिष्ट प्रतिमा चित्त में होती है उन को वे गुण उस प्रतिमा के पूजन से अवश्य संपादन होते हैं । दृष्टान्त के तोर पर लोक में माना जाता है कि ग्रहों की प्रतिमायों के पूजन से तद् विषयक गुण प्राप्त होते हैं । सतीओं की, क्षेत्राधिप की पूर्वजों की, ब्रह्मा की, कृष्ण की, शिव की और शक्ति की स्थापना मानने से हित और न मानने से अहित होता है । स्तूप ( महात्माओं के शरीर को अनि संस्कार