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( ५७ ) कर्म जीवने नहीं किये हैं उस का फल उस जीव को कैसे होगा ? और बिना जीव कर्म कैसे पैदा होंगे? इत्यादि।
(३).
अ- अगर जीव और कर्म एक साथ पैदा हुए माना जाय तो
युक्ति युक्त होगा कि नहीं? . .
उ-नहीं, वह भी अयुक्त है। अगर जीव और कर्म की
उत्पत्ति एक साथ मानी जाय तो वह भी असत् है । क्यों कि साथ में पैदा होनेवाली वस्तुओं में कर्त्ता-कर्म का भेद नहीं हो सकता । और जीवने जो कर्म नहीं किये है उस का फल जीव को नहीं हो सकता। और जिसमें से जीव और कर्म पैदा हो ऐसा उपादान कारण भी नहीं हैं। और उस के बिना वे स्वयं कैसे पैदा होंगे ? इत्यादि।
प्र--सच्चिदानंद जीव अकेला ही है और कर्म है ही नहीं,
ऐसा मानना वास्तविक होगा कि नहीं ? उ-नहीं, यह भी अवास्तविक है। क्यों कि बिना कर्म जगत्
की विचित्रता सिद्ध नहीं हो सकती । और जगत् की विचित्रता हम देखते अवश्य हैं।