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' कष' अर्थात् संसार और 'आय' अर्थात् लाभ; अर्थात् जिस से संसार का लाभ - वृद्धि होती हो उस को कषाय कहते है । वे क्रोध, मान, माया और लोभ हैं ।
प्र० यह आत्मा मोक्ष में कब जाता है ?
उ० जब तक यह आत्मा कषाय और विषय को सेवन करता है तब तक संसार में ही है । और आत्मज्ञान होने से जब कषाय-विषय और कर्म से विमुक्त होता है तब ही मोक्ष में जाता है |
उ०
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प्र० ज्ञान, दर्शन और चारित्र उदय में आये ऐसा कब गिनना ? उ० आत्मशक्ति - श्रात्मज्ञान प्रगट होने से आत्मामें आत्माको सम्यक् प्रकार जानते हैं और तब ही वह जीव को ज्ञान, दर्शन और चारित्र उदय में आये ऐसा गिनते है ।
प्र० आत्मा शरीरों को कहां तक धारण करता है ?
उ० चिद् रूप स्वभाववाला यह आत्मा कर्म के प्रभाव से जहां तक उस का अस्तित्व रहता है वहां तक शरीर को धारण करती है ।
प्र. निरंजन अर्थात् क्या ?
उ० आत्मा जब ध्यानरूप अग्नि से समस्त कर्मरूपी ईन्धन को जलाता है तब शुद्ध होती हैं और निरंजन कहलाता है । प्र० मुक्ति का कोई ऐसा भी मार्ग है कि जो सर्व दर्शनों को सभी मतों को अनुकरण करनेवाला हो, और अध्यात्मविद्या की