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( ६६ ) कपायादि को, काम कलागुण क्रियाओं को आत्मा शरीर में अदृश्य रूप से रहने पर भी कैसे धारण करती है ?
और यह दृश्यमान देह को भी जीव कैसे धारण करता है, जैसे कर्पूर, हींगादि. की अच्छी-बुरी गंध स्थिति के मुताबिक आकाश को आश्रय कर के रहती है वैसे कर्म भी जीव को आश्रय बना कर रहते हैं। इत्यादि प्रत्यक्ष दृष्टान्तों से निश्चित है कि कर्म आत्मा का आश्रय लेते हैं। अगर कोई कहें कि-गुण तो शरीर में रहते हैं तो हम उत्तर दे सकते हैं कि मृत्यु के बाद शरीर होने पर भी वे गुण क्यों नहीं दिखते ? और भी भव्यजीव का स्वीकार करने से आत्मा और कर्म का आश्रयाश्रेय भाव, आधाराधेय सम्बन्ध भी निश्चित कर सकते हैं। .
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