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षष्ठ अधिकार.
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कर्मों का कोई प्रेरक नहीं है। प्र. जगत् के प्राणी कर्मों के मुताबिक सुख दुःख को पाते हैं
मगर उन कर्मों का प्रेरणा करनेवाली कोई व्यक्ति या ईश्वर होना चाहिए । कारण यह है कि जीव स्वभाव से सुख को चाहनेवाला और दुःख का द्वेष करनेवाला है तो फिर स्वेच्छा से शुभाशुभ कर्मों को वह भोग नहीं
सकता। उ० जीव का स्वमाव शुभाशुभ कर्मों का ग्रहण करने का है।
उस को अपने कमों के सिवाय कोई सुख दुःख को नहीं देता | जो कर्म के सिद्धान्त को जानते हैं वे कर्म को ही भाग्य, भगवान् , स्वभाव, अदृष्ट या विधाता के नाम से
मानते हैं। प्र० कर्म अजीव, जड हैं इस लिए वे स्वयं कुछ नहीं कर
सकते । कोई प्रेरक अवश्य होना चाहिए।