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( ५० ) ___ अर्थ-जिस का सिद्धान्त संशुद्ध अर्थात् दोष रहित है, और जो ज्ञानादि अतिशयों से दीप्त हैं ऐसे सत्य परमेश्वर श्री वर्धमान स्वामी को नमस्कार कर के स्व (आत्मा) ज्ञानार्थे. कर्म और आत्मा संबंधी प्रश्नोत्तर पूर्वक कुछ विचार बतलाता हूँ।
श्रात्मा. . . प्र-आत्मा कैसा है ? उ---आत्मा नित्य, विभु, चेतनावान् और अरूपी है। प्र-नामा नित्यानित्य किस तरह है ! उ-आत्मा द्रव्यरुप से नित्य हैं, और मनुष्य, देव, तिर्य
· चादि भवग्रहणरुप पर्याय से अनित्य है । . . : प्र-विभु अर्थात् क्या ? . उ-विभु अर्थात् व्यापक, जिनमें सर्वत्र व्यापक होने की शक्ति
होती हैं, परन्तु सामान्यतः स्वशरीर में ही व्याप्त होकर
रहता हैं। प्र-चेतना का क्या अर्थ है ? उ-सामान्य और विशेप उपयोग को चेतना कहते है। प्र---अरूपी का क्या अर्थ है ? उ-अरूपी अर्थात् रूप, आकार, आकृति या मूर्ति रहित को
अरूपी कहते हैं। जिस को वर्ण-गंध-रस और स्पर्श . नहीं होते वे भी अंरूपी कहलाते हैं !