Book Title: Jain Tattva Sara
Author(s): Kanhiyalal Lodha
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 13
________________ तात्पर्य यह है कि साधक (जीव) के द्वारा सिद्धि रूप साध्य (मोक्ष) की प्राप्ति के लिए पाप, आस्रव, बन्ध (सम्बन्ध) रूप असाधनों का त्यागकर संवरतप (निर्जरा) तथा पुण्य रूप साधनों को अपनाना ही तत्त्वज्ञान है, साधना है। साध्य - यह विदित है कि साध्य वह है जो सबको सर्वदा, सर्वत्र, सर्व अवस्थाओं में इष्ट हो, जैसे स्वाधीनता (मुक्ति), शान्ति, सम्पन्नता, सुख, स्वस्थता आदि। ये विभूतियाँ या लब्धियाँ सभी को, सभी काल, सभी क्षेत्र, सभी अवस्थाओं में अभीष्ट हैं। अतः इनकी उपलब्धि में मानव मात्र समर्थ एवं स्वाधीन है। जैन दर्शन के शब्दों में कहें तो जो सिद्ध के गुण हैं, वे ही साध्य हैं, सिद्ध अवस्था ही साध्य है। इसे ही मोक्ष कहा है। इसी का मोक्ष तत्त्व में विवेचन है। इसके विपरीत जो किसी को इष्ट हो, किसी को इष्ट न हो, कभी इष्ट हो, कभी इष्ट न हो, कहीं इष्ट हो, कहीं इष्ट न हो, किसी अवस्था में इष्ट हो, किसी अवस्था में इष्ट न हो वह साध्य नहीं हो सकता। जैसे किसी दृश्य को देखना, किसी संगीत को सुनना, किसी पदार्थ को खाना आदि भोग, धन कमाना, खेल खेलना, बातें करना आदि क्रियाएँ। इन्हें साध्य नहीं कहा जा सकता। कारण कि ये कभी इष्ट होती हैं, कभी नहीं; किसी को इष्ट होती हैं अन्य किसी को नहीं, किसी अवस्था में इष्ट होती हैं, अन्य किसी अवस्था में नहीं इत्यादि। साधन- जो साध्य की उपलब्धि में सहायक हो, वह साधन है। साध्य सबका समान होता है, उसमें भेद व भिन्नता नहीं होती है, परन्तु साधन में यह बात नहीं है। साधन सबका भिन्न-भिन्न होता है। जिस प्रकार 'स्वस्थता' सबका साध्य है। सभी को सदा, सर्वदा, सर्वत्र स्वस्थता अभीष्ट है। कोई भी अस्वस्थ होना पसन्द नहीं करता, परन्तु स्वस्थता की उपलब्धि के लिए प्रत्येक साधक को अलग-अलग प्रयत्न करना होता है। जो जिस रोग या विकार से पीड़ित है उसे उसी रोग या विकार को दूर करने का प्रयत्न करना होता है। शारीरिक स्वस्थता के लिए शरीर के विकारों को, मानसिक स्वस्थता के लिए मानसिक विकारों को एवं आध्यात्मिक स्वस्थता के लिए आन्तरिक विकारों को दूर करने का प्रयास या साधन करना होता है। यही नहीं, शरीर के विविध विकारों के लिए विविध प्रकार के प्रयास या उपचार करना होता है। शरीर से सम्बन्धित रोग कैंसर, क्षय आदि विकारों के लिए विविध उपचार एवं विविध दवाओं का उपयोग करना होता है; इसी प्रकार मन से सम्बन्धित मानसिक विकार, तनाव, हीन भाव, निराशा, भय, चिन्ता, शोक, द्वन्द्व आदि के लिए विभिन्न प्रकार के उपचार करने होते हैं। आध्यात्मिक [XII] जैनतत्त्व सार

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