Book Title: Jain Sukta Sandoha
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Kailas Kanchan Bhavsagar Shraman Sangh Seva Trust Mumbai
View full book text
________________
SM Mahavam
A
kende
www.sobathrm.org
Acha nn
ka
en
部落等陈晓张隆染器漆器等蒂樂器樂器帶柴柴等盛装
बलं जगवंसन रक्षणक्षम, कृपा च सा सङ्गमके कृतागसि । इतीव संचिन्त्य विमुच्य मानसं, रुषेव रोषस्तव नाथ ! निर्ययौ ॥ ११ ॥ अशोकवृक्षः सुरपुष्पवृष्टिर्दिव्यध्वनिश्चामरमासनं च । भामंडलं दुन्दुभिरातपत्रं, सत्प्रातिहार्याणि जिनेश्वराणाम् ॥१२॥ किं कर्पुरमयं सुधारसमयं किं चन्द्ररोचिर्मयं, किं लावण्यमयं महामणिमय कारुण्यकेलिमयम् । विश्वानन्दमयं महोदयमयं शोभामयं चिन्मयं, शुक्लध्यानमय वपुर्जिनपतेर्भूयाद्भवालम्बनम् ॥१३॥ नमस्तुभ्यं जगन्नाथ ! त्रैलोक्याम्भोजमास्कर ! संसारमरुकल्पद्रो ! विश्वोद्वारणवान्धव ! ॥ १४ ॥ देव ! त्वं दुःखदावाग्नि-संतप्तानामेकवारिदः। मोहान्धकारमूढाना एकद्वीपस्त्वमेव हि ॥ १५ ॥ जिनधर्मविनिर्मुक्तो, माऽभूवं चक्रवर्त्यपि । चेटोऽपि दरिद्रोऽषि, जिनधर्माधिवासितः॥ १६ ॥ ऐन्द्र श्रेणिनताप्रतापभवनं भव्याङ्गिनेत्रामृत, सिद्धान्तोपनिषद्विचारचतुरैः प्रीत्या प्रमाणीकृता। मृतिः स्फूतिमती सदा विजयते जैनेश्वरी विस्फरन् , मोहोन्मादधनप्रमादमदिरामत्तैरनालोकिता ।। १७ ।। नेत्रानन्दकरी भवोदधितरी श्रेयस्तरोर्मझरी, श्रीमद्धर्ममहानरेन्द्रनगरी व्यापल्लताघूमरी । हर्षोत्कर्षशुभप्रभावलहरी रागद्विषां जित्वरी, मृतिः श्रीजिनपुङ्गवस्य भवतु श्रेयस्करी देहिनाम् ॥ १८ ॥ ये मूर्ति तव पश्यतः शुभमयीं ते लोचने लोचने, या ते वक्तिं गुणावलि निरुपमा सा भारती भारती । या ते न्यश्चति पादयोर्वरदयोः सा कन्धरा कन्धरा, यत्ते ध्यायति नाथ ! वृत्तमनघं ते मानसं मानसम् ।। १९॥ अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम । तस्मात् कारुण्यभावेन, रक्ष रक्ष जिनेश्वर ! ॥२०॥
柴柴柴柴柴警察器游染染整器端端樂器带器器带密
For Private And Personal use only

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176