Book Title: Jain Sukta Sandoha
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Kailas Kanchan Bhavsagar Shraman Sangh Seva Trust Mumbai
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अत्थंगयमि आइच्चे, पुरत्था य अणुग्गए । आहारमइयं सव्वं मणसा विन पथए ॥१०९ ॥६० अ०८ न सो परिग्गहो वुत्तो नायपुत्तेण ताइणा । मुच्छा परिग्गहो वुत्तो इइ वुत्तं महेसिणा ।। ११० ॥६० अ०६ लोभस्से समणुफासे मन्ने अन्नयरामवि । जे सिया सन्निहीकामे गिही पव्वइए न से ॥ १११ ।। द० अ०६ जे केइ बाला इह जीवियट्ठी पावाइ कम्माइ करंति रुद्धा । ते घोररुवे तमिसंधयारे तिव्याभितावे नरए पडंति ॥११२॥ सउणी जह पंसुगुंडिया विहुणिय धंसयइ सिय रयं । एवं दविओवहाणवं कम्म खबइ तवस्सी माहणे ॥११३।। सू.अ.२ संबुज्झह किं न बुज्झह, संवोही खलु पेच्च दुल्लहा । णो हूवणमंति राइओ नो सुलभं पुणरवि जीवियं ॥११४॥ स.अ.२/ जे परिभवइ परं जणं संसारे परिवत्तई मह । अदु इंखिणिया उ पाविया इति संखाय मुणी ण मञ्जइ ॥११५॥ स.अ.२ महुकारसमा बुद्धा जे भवंति अणिरिसा । नाणापिण्डस्या दंता तेण चुचंति साहुणो ।। ११६ ॥ द. अ.१ समयाए समणो होइ बंभचेरेण भणो । नाणेण य मुणी होइ तवेण होइ तावसो।। ११७ ॥ उ. अ. १५ नवि मुंडिएण समणो न ओंकारेण बंभणो । न मुणी रणवासेणं, कुसचीरेण न तावसो ॥ ११८ ।। उ. अ. २५ धम्मस्स य पारए मुणी, आरंभस्स य अंतए ट्ठिए। सोयंति य णं ममाइणो णो लब्भंति णियं परिग्गहं ।।११९।। सू. अ.२ जेन वैदेन से कुप्पे वंदिओ न समुक्कसे । एवमन्नेसमाणस्स सामण्णमणुचिट्ठइ ॥ १२० ॥ द. अ.५ पण्णसम्मते सया जये समताधम्ममुदाहरे मुणी । सुहुमे उ सया अल्सए णो कुज्जे णो माणि माहणे ॥१२शासं, अ.२ अणुसासिओ न कुपिजा खंति सेविज पंडिए । खुड्डेहिं सह संसन्गि हासं कीडं च वजए ।।१२२।। उ० अ०१ जे ये कंते पिए भोए लद्धे वि पिट्टि कुबइ । साहीणे चयइ भोए सेहु 'चाइ'त्ति बुचर ॥१२३॥ द० अ०२
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