Book Title: Jain Sukta Sandoha
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Kailas Kanchan Bhavsagar Shraman Sangh Seva Trust Mumbai

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Page 136
________________ Shi Mahavir Jain Aradhana Kendra ब्रेन सूक्त ० ॥ ६२॥ 58480-480-80-480 www.kobatirth.org. त्थगंधमलंकारं इत्थीओ सयणाणि य । अच्छंदा जे न भुंजंति न से 'चाइ'ति बुच्च ॥ १२४॥ द- अ० २ आगमविष्णाणा समाहिप्पायगा य गुणगाही । एएण कारणेणं अरिहा आलोयणं सोउं ॥ १२५ ॥ ३० अ० ३६ पाणिहमुसावाया अदत्तमेहुणपरिम्गहा विरओ । राई भोयणविरओ जीवो भवइ अणासबो ॥ १२६॥ ॐ० अ० ३० कम्णा भणो हो कम्पुणा होइ वत्तिओ । वहसो कम्मुणा होइ सुद्दो हबइ कम्मुणा ॥ १२७॥ ० ० २५ जहा पोमं जले जायं नोवलिप्पड़ वारिणा । एवं अलित्तो कामेहिं तं वयं बूम माहणं ॥ १२८|| ३० अ० २५ तवस्सियं किस देतं अवचियमंससोणियं । सुव्वयं पत्तनिव्वाणं तं वयं धूम माहणं ॥ १२९ ॥ ॐ० अ० २५ जाय जहाम निर्द्धतमलपात्रगं । रागद्दोसभयाईयं तं वयं बूम माहणं ।। १३० ॥ उ० अ० २५ लाभालाभे सुहे दुक्खे जीविए मरणे तहा । समो निंद-पसंसासु समो माणावमाणओ ॥ १३१ ॥ उ० अ० १९ संति एगेहिं भिक्खुहिं गारत्था संजमुत्तरा । गारत्थेहिं चः सव्वेहिं साहवो संजमुत्तरा ॥ १३२ ॥ उ० अ० ५ अकोसेज परो भिक्खुं न तेसिं पर संजले । सरिसो होइ बालाणं तम्हा भिक्खू न संजले ।। १३३ ।। ३० अ० २ विता अहमेव लुप्प लुप्यंति लोअंसि पाणिणो । एवं सहिएहिं पासए अणिहे से पुट्ठे अहियासी ॥१३४॥ सू. अ. २ दुलहा उमुहादायीमुहाजीवी वि दुल्लहा । महादाई मुहाजीवीदो वि गच्छंति सोग्गई ॥ १३५ ॥ ६० अ० ५ असच्चमो सच्चं च अणव अमककसं । समुप्पेहमसंदिद्धं गिरं भासेज पनवें ॥ १३६ ॥ ५० अ० ७ सात्राओ य लोगमि सव्वसाहूहिं गरहिओ । अविस्सासो य भूयाणं तम्हा मोसं विवजए ॥१३७॥ ८० अ० ६ जाय सच्चा अवत्तव्वा सच्चामोसा य जा मुसा । जा य बुद्धेहिं अणाइण्णा न तं भासेअ पन्नवं ॥१३८॥ ६० अ. ७ For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकीर्णक लोकानि ॥ ६२ ॥

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