Book Title: Jain Sukta Sandoha
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Kailas Kanchan Bhavsagar Shraman Sangh Seva Trust Mumbai

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Page 134
________________ ShriMahavirain ApartmenaKendra www.kobathrtm.org Acharya 5 Kailasagersuri Gyanmandit जैन मुक्त ॥६॥ प्रकीर्ण श्लोकानि 泰蒂蒂亲亲亲亲亲张器张密密带宗亲亲亲亲亲亲张张蒂路 तेणे जहा संधिमुहे गहीए सकम्मुणा किच्चइ पावकारी । एवं पया पेच्च इह च लोए कडाण कम्माण न मुक्ख अत्थि ॥९॥ एगया देवलोएम नरएसु वि एगया। एगया आसुरं कायं अहाकम्मे हि गच्छई ।। ९५ ।। उ० अ०३ रागो य दोसो वि य कम्मवीयं कम्मं च मोहप्पभवं वयंति । कम्मं चंजाईमरणस्समूलं दुक्खं च जाईमरणं वयंति॥१६॥ कामेहि ण संथवेहि गिद्धा, कम्मसहा कालेण जंतवो। ताले जह बंधणच्चुए एवं आउक्खयम्मि तुद्दति ॥९७॥ म. अ.२% जं जारिस पुब्वमकासि कम्मं तमेव आगच्छति संपराए । एगंतदुक्खं भवमञ्जणित्ता वेदंति दुक्खी तमणंतदुक्खं ॥९८॥ ॐ उबलेवो होइ भोगेसु, अभोगी नोवलिप्पई । भोगी भमइ संसारे-अभोगी विप्पमुच्चई ।।९९।। उ० अ०२५ जहा किंपागफलाणं परिणामो न सुंदरो । एवं भूत्ताण भोगाणं परिणामो न सुंदरो ॥१०० ॥ उ० अ० १९ जा जा बच्चइ रयणी न सा पडिनिअत्तह । अहम्मं कुणमाणस्स अहला जति राईओ॥ १०१ ॥ उ. अ.१४ संसारमावण परस्स अट्ठा साहारणं जंच करेइ कम्मं । कम्मरस ते तस्स उ वेयकाले, न बंधवा बंधवयं उर्वति ॥१०२।। एवं धम्मस्स विणओ मूलं परमो से मुक्खो । जेण कित्ति सुर्य सिग्धं, निस्सेसं चाभिगच्छह ॥१०३ ॥ द० अ०९ । जरा जाव न पीडेइ वाही जाव न बढ़ई । जाविदिया न हायति, ताव धम्म समायरे ॥ १०४ ॥ द० अ०८ जयं चरे. जयं चिद्रे जयं आसे जय सए । जय भुंनंतो भासंतो पावं कम्म न बंधई ॥ १०५ ॥ द० अ०४ जरामरणवेगेणं बुज्झमाणाण पाणिगं । धम्मो दीवो पइट्टा य गई सरणमुत्तमं ।। १०६ ॥ उ० अ० २३ धम्मो मंगलमुक्किट्ठ अहिंसासंजमो तवो । देवा वितं नमसंति जस्स धम्मे सया मगो ॥१०७॥ द० अ०१ पढमं नाणं तओ दया एवं चिट्ठइ सव्वसंजए । अन्नाणी किं काही किंवा नाहिद छेय पावगं ? ॥१०८॥ द. अ.४ 带带带端端端端端端游聯盛號继器端端端端端帶器等聯聯盟 For Private And Personal use only

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