Book Title: Jain Sukta Sandoha
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Kailas Kanchan Bhavsagar Shraman Sangh Seva Trust Mumbai
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ShriMahavirain ApartmenaKendra
Achan Kar
amandi
जेनसूक्त ॥६०॥
प्रकीर्णकश्लोकानि
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वरं मे अप्पा दंतो संजमेण तवेण य । माहं परेहिं दम्मतो बंधणेहि वहेहि य ।। ६४ ॥ 3० अ०१ जो सहस्सं सहस्साणं संगामे दुअए जिणे । एग जिणिज अप्पाणं एस से परमो जओ ॥ ६५ ॥ उ० अ०९ अप्पा चेव दमेयव्वो अप्पा हु खलु दुद्दमो । अप्पा दंतो सुही होई अस्सि लोए परत्थ य ॥ ६६ ॥ उ० अ० १ पंचिदियाणि कोहं माणं मायं तहेव लोभं च । दुञ्जय चेव अप्पाणं सव्वमपे जिए जियं ॥ ६७ ।। उ० अ०९ अप्पाणमेव जुज्जाहि किं ते जुज्झेण वझओ। अप्पणा चेव अप्पाणं जइत्ता सुहमेहए ॥ ६८ ॥ एगे जिए जिया पंच पंच जिए जिया दस । दसहा उ जिणित्ता णं सबसत्तू जिणाम हं ॥ ६९ ॥ उ० अं० २३ तवो जोई जीवो जोईठाणं, जोगा सुया सरीरं कारिसंग । कम्म एहा संजमजोग संती, होम हुणामि इसिणं पसत्यं ॥७॥ जे केई सरीरे सत्ता वण्णे रूवे य सव्यसो । मणसा कायवक्केणं सब्वे ते दुक्खसंभवा ॥ ७१ ॥ उ० अ०६ दुक्खं हयं जस्स न होई मोहो मोहो हओ जस्स न होई तोहा । तव्हा या जस्स न होई लोहो लोहो हो जस्स न किंचणाई ॥ अहे वयह कोहेणं माणेणं अहमागई। माया गइपडिग्घाओ लोहाओ दुहओ भयं ॥ ७३ ॥ उ० अ०६ कोहो पीई पणासेइ माणो विणयनासगो। माया मित्ताणि नासेइ लोहो सव्वविणासणो ॥ ७४ ॥ द० अ०८ कोहो अमाणो अणिम्गहीया माया य लोभो य पवड्डमाणा । चत्तारि एए कसिणा कसाया सिंचंति मूलाइ पुणब्भवस्स उवसमेण हणे कोहं माणं मद्दवया जिणे । माय चाजवभावेण लोमं संतोसओ जिणे ॥ ७६ ॥ द. अ०८ जइ वि य णिगणे किसे चरे जइ पि य भुंजिय मासमंतसो । जे इह मायाइ मिजई आगंता गभाय गंतसो ॥७७॥ पूयणट्ठा जसोकामी माणसम्माणकामए । बहुं पसवइ पावं मायासल्लं च कुव्वद ॥ ७८ ॥६० अ०५
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॥६॥

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