Book Title: Jain Sukta Sandoha
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Kailas Kanchan Bhavsagar Shraman Sangh Seva Trust Mumbai

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Page 131
________________ ShiMahayeJainrachanaKendra Achan Ka Beramendi 帝亲亲来亲密密密器密密亲密亲密亲密亲弟帝樂 गहलक्वणो उ धम्मो अहम्मो ठाणलक्रवणो । भायणं सव्वदव्वाणं नह ओगाहलक्रवणं ॥ ४९ ॥ उ० अ०२८ वत्तणालक्षणो कालो जीवो उवओगलक्षणो । नाणेणं दसणेणं च सुहेण य दुहेण य ॥५०॥ नाणं च दंसणं चेव चरित्नं च तवो तहा । वीरियं उवओगो य एवं जीवस्स लक्षणं ।। ५१॥ सइंघयार उजओओ पहा छायातवे हि था । वष्णरसगंधफासा पुग्गलाणं तु लक्षणं ।। ५२ ।। एगतं च पुहत्तं च संखा संठाणमेव य । संयोगा य विभागा य पजवाणं तु लक्रवणं ॥५३॥ नाणं च दंसणं चेव चरितं च तवो तहा। एय मम्गमणुपत्ता जीवा गच्छति सोग्गई॥ ५४॥ नादसणिस्स नाणं नाणेण विना न हुँति चरणगुणा । अगुणिस्स नस्थि मोक्खो, नत्थि अमुक्खस्स निव्वाणं ॥५५ ॥ नाणेण जाणइ भावे दंसपेण य सद्दहे । चरित्तेण निगव्हाइ तवेण परिसुज्झई ।। ५६ ॥ जहा मई ससुत्ता पडिया न विणस्सई । तहा जीवे समुत्ते संसारे न विणस्सइ ।। ५७ ॥ उ० अ० २९ अह पंचहि ठाणेहिं जेहिं सिक्खा न लब्भई । थंभा कोहा पमाएणं रोगेणालस्सएण य ।। ५८ ॥ उ० अ० ११ कुप्पवयणपाखंडी सब्वे उम्मग्गपठिया । सम्मन्गं तु जिणक्खायं एस मग्गो हि उत्तमो ॥ ५९ ॥ उ० अ० २३ पडिणीयं य चुद्धाणं वाया अदुव कम्मुणा । आवी वा जइ वा रहस्से णेव कुला कयाइ वि ॥ ६०॥ ठ० अ०१ परिजूरइ ते सरीरयं केसा पंडुरया हवंति ते। से सोयवले य हायई समयं गोयम ! मा पमायए ॥६१॥ उ० अ०१० अप्पा कत्ता विकता य दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च दुष्पठिय सुपहिओ ॥ ६२ ॥ उ० अ० २० अप्पा नई वेयरणी अप्पा मे कूडसामली । अप्पा कामदुहा घेणू अप्पा मे नंदणं वर्ण ॥ ६३ ॥ For Private And Personal Use Only 亲亲亲亲亲亲亲拳拳拳器需拳亲亲亲亲亲亲亲亲亲亲

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