Book Title: Jain Sukta Sandoha
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Kailas Kanchan Bhavsagar Shraman Sangh Seva Trust Mumbai

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Page 130
________________ जैन मुक्त प्रकीर्णकश्लोकानि ॥५९॥ 惨柴港赛染染部落婆婆準婆婆學崇德路密密塗张密密密排 तथापि दुःख न विनाशमेति सुख कस्यापि भजेत् स्थिरत्वम् ॥ ३२ ॥ सवणे नाणे य विनाणे, पञ्चक्खाणे य संजमे । अणासवे तवे चेव, बोदाणे अकिरिया सिद्धी ॥३३॥ सत्तलवा जइ आउं, पहुष्पमानं तओ हु सिझंता । तत्तियमित्तं न हुयं, ततो लवसत्तमा जाया ॥३४॥ क्रियाहीनं कुसाधु च, दृष्ट्वा चित्तं न चात्म्यते । तत् सम्यक्त्वं दृढं ज्ञेय, धर्मे श्रेणिकभूपवत् ॥ ३५ ॥ दसणभट्ठो भट्ठो, दसणभहस्स नत्थि निव्वाणं । सिझंति चरणरहिआ, दसणरहिआ न सिझंति ॥ ३६॥ अरिहं देवो गुरुणो सुसाहुणो जिणमयं मह पमाणं । इच्चाइ सुहो भावो, सम्मत्तं विति जगगुरुणो ॥ ३७॥ कत्थ अम्हारिसा पाणी, दूसमादोससिओ । हा अणाहा कहं हुंता न हुँतो जइ जिणागमो ॥ ३८॥ जं अन्नाणी कम्म, खवेइ बहुआइ वासकोडीहि । तन्नाणी तीहिं गुत्तो, खवेइ उसासमित्तेणं ॥ ३९ ॥ संवोध० प्र० श्रीशान्तिनाथादपरो न दानी, दशार्णभद्रादपरो न मानी। श्रीशालिभद्रादपरोन भोगी, श्रीस्थूलभद्रादपरो न योगी॥४० पूर्व न मंत्रो न तदा विचारः, स्पर्धा न केनापि फले न वाञ्छा । पश्चानुतापोऽनुशयो न गर्यो हर्षस्तथा संगमके बभूव ॥ ४४ ॥ शिष्टे संगः श्रुतौ रंगः, सद्ध्याने धीधृतौ मतिः । दाने शक्तिर्गुरौ भक्तिः, षडेते सुकृताकराः ॥ ४५ ॥ धम्मो अहम्मो आगासं कालो पुम्गल जंतवो । एस लोगुत्ति पणत्तो जिणेहि वरदंसिहि ॥ ४६ ॥ उ० अ० २८ अत्थि एग धुर्व ठाणं लोगग्गमि दुरारुहं । जत्थ नत्थि जरा मच्चू वाहिणो वेयणा तहा ।। ४७ ॥ उ० अ० २३ धम्मो अहम्मो आगासं दव्वं इकिकमाहियं । अर्णताणि य दव्वाणि कालो पुम्गल जंतवो ॥४८॥ उ० अ० २८ 彭晓晓晓晓晓张馨婆婆婆等柴柴柴柴柴柴张晓晓晓晚帶 For Private And Personal use only

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