Book Title: Jain Sukta Sandoha
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Kailas Kanchan Bhavsagar Shraman Sangh Seva Trust Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 137
________________ ShiMahayeJainrachanaKendra Achan Kailas a nmandi 帶著幾拳拳器等器蒸發器器等器幾游游带崇華帶带带带 अपुच्छिओ न भासेजा भासमाणस्स अंतरा । पिडिमंसं न खाएजा मायामोसं विवाए ॥१३९॥ ६० अ.८ अपत्तिअंजेण सिया आस कुप्पेज वा परो। सन्वसोतन भासेजा भासं अहिअगामिणि ||१४०॥ द० अ.८ । सव्वजीवा वि इच्छंति जीविउं न मरिजिउं । तम्हा पाणवहं घोरं निग्गंथा वजयंति णं ॥१४१॥ द० अ.६ तहेव फरुसा भासा गुरुभूआवघाइणी । सच्चा वि सा न वत्तवा जओ पावस्स आगमो ॥१४२।। द० अ०७ तहेव काणं 'काणे त्ति पंडग 'पंडगे ति वा । वाहिरं वा वि रोगि चि तेणं 'चोरे ति नो वए ॥१४३॥ द० अ.७ सच्चा तहेव मोसा य सच्चामोसा तहेव यः। चउत्थी असच्चमोसा य मणगुत्ती चउन्बिहा ॥१४४॥ उ. अ.२४ जहा सुणी पूहकण्णी निकसिजइ सव्वसो। एवं दुस्सिले पडिणीए मुहरी निकसिआई ॥१४५॥ उ. अ.१ ताणि ठाणाणि गच्छंति सिक्खित्ता संयम तवं । भिक्खाए वा गिहित्था वा जे संति परिनिव्वुडा ॥१४६॥उ.अ.५ दुल्लहे खलु माणुसे भवे चिरकालेण विसव्वपाणिणं । गाढा य विवाग कम्मुणो समय गोयम ! मा पमायए॥१४७॥ उ.अ.१० दुमपत्तए पंडुरए जहा निवडइ राइगणाण अच्चए । एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम ! मा पमायए ॥१४८॥ उ. अ.१० तिण्णो हु सि अप्णवं मह किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ । अभितुर पारं गमित्तए समय गोयम ! मा पमायए ॥१४९॥ कुसग्गे जह उसबिंदुए थोवं चिडलंबमाणए । एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम ! मा पमायए ॥१५०॥उ.अ.१० इमं च मे अस्थि इमं च नस्थि इमं च मे किच्चमिमं अकिच्चं । एवमेवं लालप्पमाणं हरा हरति त्ति कह पमाए॥१५१।। अ.१४ जावंत अविआपुरिसा सव्वे ते दुक्खसंभवा । लुप्पंति बहुसो मृढा संसारम्मि अणंतए ॥१५१॥ उ० अ०६ मा पच्छ असाधुता भवे अच्चेही अणुसास अप्पगं। अहियं च असाहु सोयती से थणइ परिदेवई बहुं ॥१५३॥ सू. अ.२ 密舉张黎举聽器樂樂樂器樂聯聚泰黎黎黎 For Private And Personal use only

Loading...

Page Navigation
1 ... 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176