Book Title: Jain Sukta Sandoha
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Kailas Kanchan Bhavsagar Shraman Sangh Seva Trust Mumbai

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Page 111
________________ Acharya Shri Kagera Sanmandie 卡密密的密密密婆婆露港海旁的密密密密密密密密密密密 प्रविश्य विधिना तत्र त्रिःप्रदक्षिणयेजिनम् । पुष्पादिभिस्तमभ्यर्च्य स्तवनैरुत्तमैः स्तुयात् ॥७॥ यो. प्र.३श्लो. ११३ धूपं दहति पापानि दीपो मृत्युविनाशनः । नैवैद्यैविपुलं राज्य, प्रदक्षिणा शिवप्रदा ॥ ८॥ उ. पृ.१८८ पुष्पादिपूजा तदाज्ञा च तद्रव्यपरिरक्षणं । उत्सवतीर्थयात्रा च भक्तिः पञ्चधा जिने ।। ९॥ ११८ आसन्नसिद्धिजोवलक्षणानि । संसारचारए चारएल्व, आवीलियस्स बंधेहिं । उब्विम्गों जस्स मणो, सो किर आसनसिद्धिपहो ॥१॥ आसन्नकालभवसिद्धियस्स, जीवस्स लख्खणं इणमो । विसयसुहेसु न राइ, सव्वत्थामेसु उतमइ ।। २॥ धर्म०3० ११९ भावपूजा दयाम्भसा कृतस्नानः, सन्तोषशुभववस्त्रभृत् । विवेकतिलकभ्राजी भावनापावनाशयः॥१॥ भक्तिश्रद्धानघुसणोन्मिश्रकश्मीरजद्रवैः । नवब्रह्मांगतो देवं शुद्धमात्मानमर्चय ॥ २॥ क्षमापुष्परत्रजं धर्मयुग्मक्षौमद्वयं तथा । ध्यानाभरणसारं च तदङ्गे विनिवेशय ॥३॥ मदस्थानमिदात्यागेलिखाग्रे चाष्टमङ्गलीम् । ज्ञानानौ शुभसङ्कल्पकाकतुण्डं च धूपय ॥ ४ ॥ प्राग्धर्मलवणोत्तारं धर्मसंन्यासवहिना । कुर्वन् पूरय सामर्थ्य राजनीराजनाविधिम् ॥५॥ स्फुरन्मङ्गलदीपं च स्थापयानुभवं पुरः । योगनृत्यपर(स्तु)स्तौर्यत्रिकसंयमवान् भव ॥६॥ उल्लसन्मनसः सत्यघष्टां वादयतस्तव । भावपूजारतस्येत्यं करक्रोडे महोदयः ॥७॥ 8818-08-18--82822222288-98-98909888 For Private And Personal use only

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