Book Title: Jain Sukta Sandoha
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Kailas Kanchan Bhavsagar Shraman Sangh Seva Trust Mumbai

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Page 124
________________ ShriMahavirain ApartmenaKendra Acaran Kailas a nmandi जैन सूक्त प्रव्रज्या ॥५६॥ 上柴柴等蒸發器蒂柴柴柴柴柴端器崇器際舉聯柴柴柴整參參 निर्जराकरणे बाह्या-च्छेष्ठमाग्यन्तरं तपः । तत्राप्येकातपत्रत्वं, ध्यानस्य मुनयो जगुः ॥२३॥ अन्तर्मुहर्त्तमात्रं य-देकाग्रचित्तताऽन्वितम् । तद्ध्यानं चिरकालाना, कर्मणां क्षयकारणम् ॥ २४ ॥ ध्याता ध्यान तथा ध्येय-मेकतावगतं त्रयम् । तस्य बनन्यचित्तस्य, सर्वदुःखक्षयो भवेत् ॥ २५ ।। प्रायो वाङ्मनसोरेव, स्याद्ध्याने हि नियन्त्रणा । कायोत्सर्ग तु कायस्या-प्यतो ध्यानात् फलं महत् ॥ २६ ॥ ऊर्ध्वस्थशयिताद्यैश्च, कायोत्सर्गः क्रियारतैः । एकोनविंशतिदोषै-मुक्तः कार्यों यथाविधि ॥ २७॥ १३९ प्रव्रज्या अंतोमुहुत्तमित्त, विहिणा विहिया करेइ पव्वज्जा। दुक्खाणं पज्जत, चिरकालकयाइ कि मणिमो ? ॥१॥ वरं अग्गिम्मि पवेसो, वरं विसुद्धेण कम्मणा मरणं । मा गहियन्वयभंगो, मा जी खलियसीलस्स ॥२॥ दीक्षा मोहहरी महोदयकरी दीक्षा त्रिलोकाचेनी, दीक्षा शुद्धिकरी विषादहरणी दीक्षा च शिक्षाऽवनी ।। दीक्षा श्रीजिनसेविता गुणगणैदीक्षा सदा पूरिता । तां श्रीक्षान्तियुतां भवान्तपदवीमाराध्य जग्मुर्जनाः ॥३॥ मेरुसर्पपयोः प्रद्यो-तनखद्योतपोतयोः । अन्तरं यादृशं ताह-गनगारिगृहस्थयोः॥४॥ निराश्रवं संयममात्मशुध्ध्या, प्रपाल्य चारित्रगुणान्वितः सन् । क्षिप्त्वाऽष्टकर्माण्यखिलानि साधु-रुपैति निर्वाणमनन्तसौख्यम् ॥ ५॥ पडिलेहणं कुणतो, मिहो कहं कुणइ जणवयकहं वा । देह च पच्चक्खाणं, वाएइ सय पडिच्छा बा ॥६॥ पुढवि आउकाए, तेऊ वाऊ वणस्सइ तसाणं । पडिलेहणापमत्तो, छन्नं पि विराहओ होह ॥ ७॥ For Private And Personal Use Only 棒带带带带带帶路發發發聯審聯聯聯發發發發路遊樂盛带领 ॥५६॥

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