Book Title: Jain Sukta Sandoha
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Kailas Kanchan Bhavsagar Shraman Sangh Seva Trust Mumbai

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Page 127
________________ ShiMahayeJainrachanaKendra Acha Sh bila n 8-8890-93-80%8000 एगत्थ सव्वधम्मा, साहम्मियवच्छल तु एगत्थ । बुद्धितुलाएतुलिया, दो वि अ तुल्लाई भणिआई ॥ २॥ साधर्मिवत्सले पुण्यं, यद्भवेत्तद्वचोऽतिगम् । धन्यास्ते गृहिणोऽवश्य, तत् कृत्वाऽश्नन्ति प्रत्यहम् ॥३॥ १४४ श्रावककृत्यानि मन्नह जिणाणं आणं, मिच्छं परिहरह धरह सम्मत्तं । छबिहआवस्सयम्मि य, उज्जुत्ता होह पइदिवसं ॥१॥ पव्वेसु पोसहवयं, दाणं सील तवो य भावो य । सज्झाय नमुक्कारो, परोवयारो य जयणा य ॥२॥ जिणपूआ जिणथुणणं, गुरुथुई साहम्मियाण वच्छल्लं । सव्वविरइमणोरह, एमाई सइदकिच्चाई ॥३॥ १४५ प्रकीर्णकश्लोकानि सम्पत्ती नियमः शक्ती, सहनं यौवने व्रतम् । दारिये दानमत्यल्पमपि लाभाय भूयसे ॥१॥प्र. पृ. १४१, श्लो. १ दृष्टिपूतं न्यसेत् पादं वस्त्रपूतं षिवेज्जलम् । सत्यपूतं वदेद् वाक्यं, मनःपूतं समाचरेत् ॥२॥ आहिक, श्लो. ३३ सा कि सभा यत्र न सन्ति वृद्धा, वृद्धा न ते ये न वदन्ति धर्मम् । धर्मः स नो यत्र न चैव सत्य, सत्यं हि तयत्र परस्य रक्षा ॥३॥ धर्मकल्प० पृ०७८, श्लो०६५ उदारस्य तृणं वित्तं, शूरस्य मरणं तृणम् । विरक्तस्य तृणं भार्या, निःस्पृहस्य तृणं जगत् ॥४॥ उद्भटसागर श्लो. १३४ लोभमूलानि पापानि, रसमूलानि व्याधयः । स्नेहमूलानि, दुःखानि, त्रीणि त्यक्त्वा सुखी भव ॥ ५ ॥३० पृ०४९ 23222309893828 發带卷器發带帶灘器端端懿樂器漆器茶鑑識藥殘喘蹄榮等名 For Private And Personal use only

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