Book Title: Jain Sukta Sandoha
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Kailas Kanchan Bhavsagar Shraman Sangh Seva Trust Mumbai
View full book text
________________
जिज्ञासा
जैन सूक्त ॥५०॥
柴柴柴柴柴榮路際影際蒂蒂蒂路类游张晓荣浩密密
द्रव्यपूजोचिता भेदोपासना गृहमेधिनाम् । भावपूजा तु साधुनामभेदोपासनात्मिका ॥ ८॥ वा. ज्ञा.
१२० जिनाज्ञा आणाइ तवो आणाइ संजमो तह य दाणमाणाए । आणारहिओ धम्मो पलालपुलुब्ब पडिहाइ ॥ १॥ एगो साहु एगा साहुणी सावओ वा सड्डी वो । आणाजुत्तो संघो सेसो पुण अट्ठीसंघाओ ॥२॥ सो हु तवो कायव्वो जेण मणो मंगुलं न चिंतेइ । जेण न इंदियहाणी जेण य जोगा न हायति ॥३।। सु. पृ.६३-६४ अकालमियंमाज्ञाझा ते हेयोपादेयगोचरा । आश्रवः सर्वथा हेयः उपादेयश्च संवरः ।। ४॥ वीतरागस्तोत्रम्
१२१ देवद्रव्यम् जिणपवयणयुड्डिकर, पभावगं नाणदसणगुणाणं । रक्खेतो जिणदव्वं, तित्थयरतं लहइ जीवो ॥१॥ जिणपवयणबुडिकर, पभावगं नाणदसणगुणाणं । भक्वंतो जिणदव्वं, अणंतसंसारिओ होह ॥ २ ॥ चेअदबविणासे, रिसिघाए पवयणस्स उड्डाहे । संजइ चउत्थभंगे, मूलग्गी वोहिलाभस्स ॥३॥
१२२ उपधानम् उपधानतपो विधिवद् विधाय, धन्यो निधाय निजकण्ठे । द्वधाऽपि सूत्रमाला द्वेधाऽपि शिवश्रियं श्रयति ॥१॥ मुक्तिकनीवरमाला, सुकृतजलाकर्षणे घटीमाला । साक्षादिव गुणमाला, माला परिधीयते धन्यैः ॥२॥ सु. पृ. २५२
密密港柴柴柴港游带笨港等赛落券张张张密密的惨惨惨
५०॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176