Book Title: Jain Sukta Sandoha
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Kailas Kanchan Bhavsagar Shraman Sangh Seva Trust Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ SM Mahavam A kende Acharya Sh Kailasager Gamandi जनमुक्त देव २ १ ॥ 各继张张张影蒂蒂蒂蒂器器绕绕绕绕蒂器崇榮器樂器際路 निरातको निराकासो, निर्विकल्पो निरअनः। परमात्माऽक्षयोऽत्यक्षो, ज्ञेयोऽनन्तगुणोऽव्ययः॥१॥ वि० उ० १२ ग्लो ३३ भवबीजाकरजनना रागाद्याः क्षयमुपागता यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा, हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥२॥ वीतरागस्तोत्र (हेमचंद्र), प्रकाश २१,ग्लो० ४४ महाज्ञान भदेद्यस्य, लोकालोकप्रकाशकम् । महादया दमो ध्यान, महादेवः स उच्यते ॥ ३॥ रागडेपौ महामल्लो, दुर्जयो येन निर्जितौ । महादेवं तु तं मन्ये, शेषा वै नामधारकाः ॥ ४॥ महाक्रोधो महामानो, महामाया महामदः । महालोभो हतो येन, महादेवः स उच्यते ॥५॥ महादेवस्तोत्रः यस्य निखिलाश्च दोषा न सन्ति सर्वे गुणाश्च विद्यन्ते । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा, हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥६॥ वीतरागो जिनो देवो रागद्वेषविवर्जितः । इतमोहमहामल्लः, केवलज्ञानदर्शनः ॥७॥ पार्श्व० (गद्य) पृ० ८२ (प्र० स०) सम्यक्त्वमोहनीयं शपयत्यष्टावतः कषायांश्च । क्षपयति ततो नपुंसकवेदं स्त्रीवेदमथ तस्मात् ॥ ८॥ हास्यादि ततः षट्क क्षपयति तस्माच्च पुरुषदेदमपि । संज्वलनानपि हत्वा, प्रामोत्यथ वीतरागत्वम् ॥ ९॥ प्रशमरति, श्लो० २६०, २६१ जिनेन्द्रप्रणिधानेन, गुरूणां वन्दनेन च । न तिष्ठति चिरं पापं, छिद्रहस्ते यथोदकम् ॥ १० ॥ For Private And Personal Use Only ॥४॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176