Book Title: Jain Sukta Sandoha
Author(s): Kailassagarsuri
Publisher: Kailas Kanchan Bhavsagar Shraman Sangh Seva Trust Mumbai
View full book text
________________
ShriMahavirain ApartmenaKendra
Acharya 5
Kailasagersuri Gyanmandit
जैन मुक्त
चरित्र
音樂器鉴勞肇端端端帶紫器幾號號號路张继器端聯號带
अज्ञानं खलु भो कष्ट, क्रोधादिभ्योऽपि सर्वपापेभ्यः । अर्थ हितमहितं वा, न वेत्ति येनावृतो लोकः ॥२॥अ. लो०३ आहारनिद्राभयमैथुनानि, सामान्यमेतत्पशुभिर्नराणाम् ।ज्ञानं विशेषः खलु मानवाना, ज्ञानेन हीनाः पशवो मनुष्याः ॥३॥ अज्ञानी क्षपयेत् कर्म, यजन्मशतकोटिभिः । तज्ज्ञानी तु त्रिगुप्तात्मा, निहन्त्यन्तर्मुहूर्तके ॥ ४॥त. श्लो० १९० मिथ्यानानं समस्तं तदिहलोकोपयोगि यत् । रागद्वेषादयो यस्मात् प्रवर्धन्ते शरीरिणाम् ।।५।। सु० सू० पृ. ६ श्लो. ३३
चारित्र ८ सर्वसावद्ययोगाना, त्यागश्चारित्रमिष्यते । कीर्तितं तदहिंसादिबतभेदेन पञ्चधा ।। १ ॥ यो. प्र० ३९ श्लो० १८ प्र.स. अथवा पश्चसमितिगुप्तित्रयपवित्रितम् । चरित्रं सम्यश्चारित्रमित्याहुर्मुनिपुङ्गवाः॥२॥यो. पृ० ३३ श्लो०३४ (प्र. स.) सदर्शनज्ञानबलेन भूता, पापक्रियाया विरतिस्त्रिधा या ! जिनेश्वरैस्तद्गदितं चरित्रं, समस्तकर्मक्षयहेतुभूतम् ॥३॥सु०२१० सामायिकमित्याद्यं छेदोपस्थापनं द्वितीयं तु । परिहारविशुद्धिकं मूक्ष्मसम्परायं यथाख्यातम् ॥४॥ प्र. "लो० २२८ पञ्चस्त्रवाद्विरमणं पञ्चेन्द्रियनिग्रहः कषायजयः । दण्डत्रयविरतिश्चेति, संयमः सप्तदशभेदः॥५॥ प्र. श्लो० १७२ चारित्ररत्नान परं हि रत्नं, चारित्रवित्तान परं हि वित्तम् । चारित्रलाभान्न परो हि लाभश्चारित्रयोगान्न परोहियोगः ॥६॥ प.ए, पृ०१६श्लो०१४८ सदृर्शनज्ञानतपोदयाद्याश्चारित्रभाजः सफलाः समस्ताः । व्यर्थाश्चरित्रेण विना भवन्ति ज्ञात्वेह सन्तश्चरिते यतन्ते ॥७॥ सम्यक्त्वं भावयेत् क्षिप्रं,सद्ज्ञानं चरणं तथा । कृच्छ्रात सुचरितं प्राप्त, नृत्वं याति निरर्थकम् ॥ ८॥त. श्लो० ४६
For Private And Personal use only
餐露器端端端端樂器器端端端樂器聯继器樂器樂聽器继號

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176