Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 21
________________ [१७] बोल नं० पृष्ठ बोल नं० ६४ (5) व्यवहार निश्चय पैतीस गाथा २ १ ६३ ९८६ समय क्षेत्र के उन८३ (१६) व्रतधारी तिर्यञ्च चालीस कुल पर्वत १४४ समय विधि पूर्वक अन्त ८ समय (काल) परिमाए काल कर कहां उत्पन्न के ४६ भेद होते है१ ११७/ १४ (६) सम्यग्ज्ञान २६३ गाथा ७ १-२४४/६६४ (५) सभ्यग्दर्शन १६४ (४०) शल्य गाथा १४ (१३) शील गाथा १६-१७७ | गाथा १० ६६४ शील की बत्तीस उपमा १५ / ६८३ (११) सर्व विरति रूप ५८३ (१६) आवक अन्त सामायिक वाले को पोरिसी आदि प्रत्या-- समय आलोचना प्रति ख्यानों की क्या आवक्रमण कर संथारा पूर्वक श्यकता है? १०७ काल कर कहां उत्पन्न होता है? १९७६ ३ (१७) साधु इस भव १००३ श्रावक के प्रत्याख्यान । की स्थिति पूरी कर के ४६ भंग २६७) कहां उत्पन्न होते हैं ? ११५ १९६२ साधु को इकतोस उपमाए' १०१२ संवर के ५७ भेद ८० ११००७ साधु के बावन ६६४ (१८) सच्चा त्यागी अनाचीर्ण २५२ गाथा २ १८८३ (१८) साधु महात्मा, ६४ (११) सत्य गाथा १४-१७२ जिन्होंने आठ कर्म ES (१२) सत्य वचन में भी । क्षय कर दिये हैं, यहां क्या साधु को विवेक की स्थिति पूरी कर रखना चाहिये १ १०७ कहां उत्पन्न होते हैं १ ११७ PLE सत्य वचनातिशय ३ (२१) सामायिक और

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