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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, सातवां भाग ४५. क्षेमा, क्षेमपुरा, अरिष्टा, अरिष्टापुरा, खड्गी, मंजूषा, औषधि और पुंडरिकिणी । पुष्कलावती विजय से पूर्व की ओर उत्तर सीता मुखवन है जो कि जम्बुद्वीप की जगती से लगा हुआ है।
सीता महानदी के दक्षिण की ओर नवें से सोलहवें तक आट विजय हैं। उक्त नदी के उत्तर के भाग में जैसे जगती से लगा हुआ उत्तरसीतामुख बन है उसी प्रकार इसके दक्षिण भाग में भी दक्षिण सीतामुख बन है। इस रन से पश्चिम में उत्तरोत्तर आठ विजय और उनके विभाजक पर्वत और नदियाँ हैं। ये सभी इस क्रम से स्थित हैं-वत्स विजय, त्रिकूट पर्वत, सुवत्स विजय, तप्तबला नदी, महा वत्स विजय, वैश्रमणकूट पर्वत, वत्सावती विजय, मत्तजला नदी, रम्य विजय, अंजन पर्वत. रम्यक् विजय, उन्मत्तजला नदी, रमणीय विजय, मातजन पर्वत, मंगलावती विजय । मंगलावती विजय से पश्चिम में गजदन्ताकार सौमनम पर्वत है। यह पर्वत मेरु पर्वत से
अग्निकोण में स्थित है। प्राठों विजयों की राजधानियों के नाम क्रमशः ये हैं-सुसीमा, अण्डला, अपराजिता, प्रभङ्करा, अङ्कायती, पक्ष्मावती, शुभा और रत्नसंचया ।
अपरविदेह में सीतोदा महानदी के दक्षिण तट पर सत्रहवें से चौबीसवें तक आठ विजय हैं। ये क्षेत्र मेरु पर्वत से नैऋत्य कोण में स्थित गजान्ताकृति वाले विद्युत्प्रभ पर्वत से क्रमशः पश्चिम की ओर हैं । उक्त क्षेत्र एवं उनके विभाजक पर्वत और नदियाँ उत्तरोत्तर पश्चिम की ओर इस क्रम से रहे हुए हैं:-पक्ष्म विजय, अंकावती पर्वत, सुपक्ष्म विजय, क्षीरोदा नदी, महापक्ष्म विजय, पच्मावती पर्वत, पक्ष्मावती विजय, शीतश्रोता नदी, शंख विजय, श्राशीविष पर्वत, कुमुद विजय, अन्तर्वाहिनी नदी, नलिन विजय, सुखावह पर्वत,नलिनावती विजय। आठों विजयों की राजधानियाँ क्रमशः ये है-अश्वपुरा, सिंहपुरा, महापुरा, विजयपुरा, अपराजिता,