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.१.४ , श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला से ज्ञात होती हैं । इस कारण वे अपने विमान से ही, केवली जो उत्तर देते हैं उसे जानते और देखते हैं। ___टीकाकार ने स्पष्टीकरण करते हुए कहा है कि अनुत्तरविमानवासी देवों का अवधिज्ञान सकल लोकनाड़ी को विषय करता है और इसलिये उससे मनोद्रव्य वर्गणाएं भी जानी जा सकती हैं । लोक के संख्यात भाग को विषय करने वाला अवधि भी मनोद्रव्यग्राही माना गया है तो सकल लोकनाड़ी को जानने वाला अवधिज्ञान मनोद्रव्य वर्गणाएं ग्रहण करे, इसमें क्या विशेषता है ? . इस प्रकार अनुत्तरविमानवासी देव मनोद्रव्य को ग्रहण करने वाले अवधिज्ञान द्वारा अपने विमान से ही केवली के उत्तर जानते हैं।
(c) प्रश्न-मनःपर्ययज्ञान का विषय क्या है ? - उत्तर-मनःपर्ययज्ञान का विषय द्रव्य क्षेत्र काल और भाव से चार प्रकार का कहा गया है । द्रव्य की अपेक्षा मनापर्ययज्ञानी संज्ञी जीवों के, काययोग से ग्रहण कर मनोयोग द्वारा मन रूप में परिणत हुए मनोद्रव्य को जानता है । क्षेत्र की अपेक्षा वह मनुष्य क्षेत्र के अन्दर रहे हुए संज्ञी जीवों के उक्त मनोद्रव्य जानता है। काल की अपेक्षा वह मनोद्रव्य की पर्यायों को भूत और भविष्य काल में पन्योपम के असंख्यात भाग तक जानता है। भाव की अपेक्षा मनःपर्ययज्ञानी द्रव्यमन की चिन्तनपरिणत रूपादि अनन्त पर्यायों को जानता है। परन्तु भावमन की पर्याय मनःपर्ययज्ञान का विषय नहीं है । भावमन ज्ञानरूप है और ज्ञान अमूर्त है इसलिए वह छमस्थ के ज्ञान का विषय नहीं है । मनःपर्ययज्ञानी चिन्तन परिणत द्रव्यमन की पर्यायों को साक्षात् जानता है किन्तु चिन्तन की विषयभूत घटादि वस्तुओं को वह मनःपर्ययज्ञान द्वारा साक्षात् नहीं जान सकता। मनोद्रव्य की पर्याय को जानकर वह अनुमान करता है-चूँ कि मनोद्रव्य इस प्रकार विशिष्ट रूप से