Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 198
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, सातवा भाग २९३. - छियालीसवाँ बोल संग्रह ६६८-गणितयोग्य कालपरिमाण के ४६ भेद (१) समय-काल का सूक्ष्मतम भाग। (२) श्राव'लका-असंख्यात समय की एक प्रावलिका होती है। (३) उच्छ्वास-संख्यात प्रालिका का एक उच्छ्वास होता है। (४) निःश्वाम-सख्यात श्रावलिका का एक निःश्वास होता है। (५) प्राण-एक उच्छवाम और निःश्वास का एक प्राण होता है। (६ स्नोक-सात प्राण का एक स्तोक होता है। . (७) लव-सात स्तोक का एक लव होता है। । (८) मुहूर्त-७७ लव या ३७७३ प्राण का एक मुहूर्त होता है। (8) अहोरात्र-तीम मुहूर्त का एक अहोरात्र होता है। . १०) पक्ष- पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष होता है। (११' मास-दो पक्ष का एक माम होता है। ., (१२) ऋतु-दो मास की एक ऋतु होती है। :: . (१३) अयन-तीन ऋरों का एक अयन होता है। . . (१४) संवत्सर (वर्ष)-दो अयन का एक संवत्सर होता है। (१५) युग-पांच संवत्सर का एक युग होता है। । : ' (१६) वर्षशत-चीम युग का एक वर्षशत (सौ वर्ष) होता है। (१७) वर्पसहस्र-दम वशित का एक वर्षसहस्र (एक हजार वर्ष) होता है। • (१८) वर्षशतसहस्र-सौ वर्षसहस्रों का एक वर्षशतसहस्र (एक लाख वर्ष) होता है। (१६ पूर्वांग-चौगसी लाग्य वर्षों का एक पूर्वांग होता है। २०) पूर्व-पूर्वाग को चौरासी लाख से गुणा करने से एक पूर्व होता।

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