Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 202
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, सातवां भाग २६७ उनपचासवां बोल संग्रह १००३-श्रावक के प्रत्याख्यान के ४६ भंग करना, कराना, अनुमोदन करना (करते हुए को भला जानना) ये तीन करण हैं । मन, वचन और काया-ये तीन योग हैं। इनके संयोग से मूल भंग नौ और उत्तर भंग (भांगे) उनपचास होते हैं। नौ भंग ये हैं-(१) तीन करण तीन योग (२) तीन करण दो योग (३) तीन करण एक योग (४) दो करण तीन योग (५) दो करण दो योग (६) दो करण एक योग (७) एक करण तीन योग (८) एक करण दो योग (ह)एक करण एक योग । इस प्रकार नौ भंगों से श्रावक भूत काल का प्रतिक्रमण करता है, वर्तमान काल में प्राश्रव का निरोध करता है और भविष्य के लिये प्रत्याख्यान अर्थात् पाप नहीं करने की प्रतिज्ञा करता है। १-तीन करण तीन योग (१) करूँ नहीं कराऊँ नहीं अनुमोदूँ नहीं मन से चचन से काया से २-तीन करण दो योग (२) करूँ नहीं कराऊँ नहीं अनुमो, नहीं मन से वचन से (२१ " " " मन से काया से (४) " " , पचन से काया से ३-तीन करण एक योग। (५) करू नहीं कराऊँ नहीं अनुमोदूँ नहीं मन से (६) , " , वचन से (७) F काया से ४-दो करण तीन योग (E) करूं नहीं कराऊँ नहीं मन से वचन से काया से (8) करू नहीं अनुमो, नहीं ॥ ॥

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