Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 205
________________ श्री जैन सिद्धान्त बाल संग्रह, सातवां भाग २७१ पचासवां बोल संग्रह १००४-प्रायश्चित्त के पचास भेद दस प्रकार का प्रायश्चित्त, प्रायश्चित्त देने वाले के दस गुण प्रायश्चित्त लेने वाले के दस गुण, प्रायश्चित्त के दस दोप, दोष प्रतिसेवना के दस कारण ये कुल मिला कर प्रायश्चित्त के पचास भेद कहे जाते हैं। इसी ग्रन्थ के तीसरे भाग में बोल नं०६३३ (नवतच)में तथा बोल नं०६६६, ६७०, ६७,६७२, ६६३, में प्रायश्चिच के पचास भेद व्याख्या सहित दिये गये हैं। (भगवती सूत्र पचीसवा शतक उद्दशा७) इकावनवां बोल संग्रह १००५-आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध · के इकावन उद्देशे श्राचारांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्वन्ध के नौ अध्ययन हैं। नौ अध्ययन के इकावन उद्देशे हैं- पहले अध्ययन के सात उद्देशे हैं, दूसरे अध्ययन के छः उद्देशे हैं, तीसरे और चौथे अध्ययन के चार चार उद्देशे हैं, पाँचवें अध्ययन के और छठे अध्ययन के ५ उद्देशे हैं, सातवें अध्ययन के सात उद्देशे हैं। इस अध्ययन का विच्छेद हो गया माना जाता है । पाठवें अध्ययन के आठ और नवे अध्ययन के चार उद्देशे हैं। इस प्रकार श्राचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्धं के नौ अध्ययनों के कुल ५१ (७+६+४+४+६+५+७+ ८+४=५१) उद्देशे हैं। (समवायाग सत्रश

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