Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 07
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 209
________________ २७८ श्री सेठिया जैन अन्यमाला लवणसमुद्र के जल से जहाँ इस पर्वत का स्पर्श होता है वहीं इस ' के दोनों तरफ चारों विदिशाओं (कोण) में गजदन्ताकार दो दो दादाएं निकली हुई हैं। एक एक दादा पर सात सात अन्तरद्वीप हैं। इस प्रकार चार दादाओं पर अठाईस अन्तरद्वीप हैं। पूर्व दिशा में ईशानकोण में जो दाढ़ा निकली है उसमें सात अन्तरद्वीप इस प्रकार हैं-(१) लवण समुद्र के पर्यन्त भाग से तीन सौ योजन जाने पर पहला एकोरुक नाम वाला अन्तरद्वीप भाता है। यह अन्तरद्वीप जम्बूद्वीप की जगती से तीन सौ योजन दूर है। इसका विस्तार तीन सौ योजन का और इसकी परिधि · कुछ कम ६४६ योजन की है । (२) एकोसक द्वीप से चार सौ : योजन जाने पर दूसरा हयकर्ण अन्तरद्वीप आता है। यकर्ण अन्तरद्वीप जम्बूद्वीप की जगती से चार सौ योजन दूर है। यह 'चार सौ योजन विस्तार वाला है और इसकी परिधि कुछ कम १२६५ योजन की है । (३) हयकर्ण द्वीप से पाँच सौ योजन आगे सीसरा आदर्शमुख नामक अन्तरद्वीप है । यह द्वीप जम्बुद्वीप की जगती से पाँच सौ योजन दूर है। इसकी लम्बाई चौड़ाई पाँच सौ योजन की और परिधि १५८१ योजन की है। (४ श्रादर्श .. मुख अन्तरद्वीप से छ: सौ योजन आगे चौथा अश्वमुख अन्तर द्वीप है । जम्बूद्वीप की जगती से यह छः सौ योजन दूर है। इसका विस्तार छ: सौ योजन का और परिधि १८६७ योजन की है। (५) चौथे अन्तरद्वीप से सात सौ योजन आगे पाँचवां अश्वकर्ण अन्तरद्वीप है। यह जम्बूद्वीप की जगती से सात सौ योजन दूर है। इसका विस्तार सात सौ योजन है और परिधि २२१३ योजन की है ६) अश्वकर्ण से आठ सौ योजन आगे छठा उन्कामुख नामक अन्तरद्वीप है। जगती से यह आठ सौ योजन दूर है। • इसका विस्तार आठ सौ योजन का और परिधि २५२६ योजन

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