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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, सातवां भाग (३०) सकाम और अकाम मरण की तुलना करके तथा सकाम मरण की विशिष्टता जानकर और इसी प्रकार शेष धर्मो से यतिधर्म की विशेषता समझ कर बुद्धिमान साधु कपायरहित हो और क्षमा द्वारा अपनी आत्मा को प्रसन्न रखे ।
१३१) कपायों को शान्त करने के बाद, जा योगों की शक्ति हीन हो जाय और मरणकाल निकट हो उस समय श्रद्धावान् साधु मौन के डर से होने वाला रोमाञ्च दूर करे एवं शरीर का नाश चाहे अर्थात् शरीर की ओर निरपेक्ष हो जाय ।
(३२) इसके बाद मरण समय प्राप्त होने पर साधक पुरुष शरीर का मपत्व त्याग कर संलेखनादि उपक्रमों द्वारा शरीर की घात करता हुआ मलप्रत्याख्यान, इगित और पादपोपगमन, इन तीन मरणों में से किसी एक द्वारा सकाम मरण मरता है।
(उत्तमध्ययन मत्र पाचवा अध्ययन ) ६७३-उत्तराध्ययन सूत्र के ग्यारहवें बहु
श्रुत पूजा अध्ययन की बत्तीस गाथाएं (१) में वाह्य प्रास्यन्तर संयोग से मुक्त हुए गृहत्यागी भिन्नु का प्राचार प्रगट करूंगा। उसे अनुक्रम से ध्यान पूर्वक सुनो।
(२) जो विद्या रहित है, अभिमानी है, रसादि में गृद्ध है, जिसने इन्द्रियों को वश नहीं किया है,जो असम्बद्धभापण करता है और अविनीत है वह अबहुश्रुत है।
(३) शिक्षा प्राप्त न होने के पाँच कारण हैं-अभिमान, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य ।
(४-५) आठ स्थानों से यह प्रात्मा शिक्षाशील कहा जाता है अर्थात् आठ गुणों का धारक पुरुप शिक्षा प्राप्त करने योग्य होता है-(१) हास्य क्रीड़ा न करने वाला (२) सदा इन्द्रियों का दमन