________________
।
88888888888888888888888888888888888888888888888
8888888888888888 2. अजीव
चैतन्य गुण रहित तत्त्व 'अजीव' कहलाता है। यह जडलक्षण होने के कारण सुख-दु:ख आदि के अनुभव से रहित होता है। विश्व के समस्त जड़ पदार्थ अजीव तत्त्व के अन्तर्गत आते हैं। जैसे
* धर्मास्तिकाय * अधर्मास्तिकाय * आकाशास्तिकाय * पुद्गलास्तिकाय ---
* काल द्रव्य 3.आस्रव
शुभ कर्म अथवा अशुभकर्म का आगमन 'आस्रव कहलाता है। 'आस्रव' शब्द को व्युत्पत्ति के सन्दर्भ में जैनाचार्यों ने कहा है
आ समन्तात् सव:-आस्रव: सब तरफ से शुभ या अशुभ कर्मों का आना आस्रव है।- --
सारांश यह है कि जीव और अजीव का संयोग होने पर नूतन कार्मणवर्गणा का आगमन आस्रव कहलाता है। आस्रव द्वार से ही आत्मा पर कर्म पुद्गल आच्छादित होते हैं। द्रव्य आस्रव व भाव आस्रव के नाम से इसके दो भेद भी जैनदर्शन में प्रसिद्ध हैं।
888888888888888888888888888888888888888888
88888888888
9 ., चौदह ।